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________________ ( २२० ) - अटट वृहत् अनशब्दार्णव अट्ठकवि (२) एक धनदेव सेठ की पुत्री का काल होता है । (पीछे देखो शब्द 'अङ्कनाम जिस का कथन विपाकसूत्र के १० वे विद्या,' का नोट ८ पृ० ११०,१११) ॥ अध्याय में है (अ० मा० अंजू)। (हरि० सर्ग ७ श्लोक १६-३१) अटट-काल विशेष, एक बहुत बड़ा काल | अट्टन ( अट्टण )--उज्जयनी में रहने परिमाण, चौरासी लाख अष्टाङ्ग वर्ष, वाले एक मल्ल का नाम । __यह मल्ल सोपारक नगर के राजा के “(८४ लक्ष )१८ वर्ष ॥ .. पास से बहुत बार इनाम (पारितोषिक ) ८४ लक्ष का १८ वां बल ( घात ), लाया था, परन्तु उसकी वृद्धावस्था में . अर्थात् ८४ लाख को १८ जगह रख कर एक प्रतिस्पर्धी ( ईर्षालु,देख जलने वाला) : परस्पर गुणन करने से जो संख्या प्राप्त हो खड़ा हो गया जिसने उसे पराजित किया, उतने वर्षों का एक अटट होता है । ४३३ , इस लिये अट्टण ने दुखी होकर मुनिदीक्षा ५३,७६७६३६२६५३३८५३२१८३६५, २११५ लेली (अ० मा० ) ॥ १५२९९६००००००००००,००००००००००० अट्रकवि :( अहंदास )-एक कर्णाटक ००००००००००००००००००००००००००० ००,००००००००००००००००००००, ०००० देशीय ब्राह्मण कुलोत्पन्न प्रसिद्ध जैन ०००००००००००००००० (३५ अङ्क और १० ___ कवि ॥ शन्य,सर्व १२५ स्थान) वर्षोंका एक 'अटट' इस कवि के सम्बन्ध में निम्न लिखित काल कहलाता है। (पीछे देखो श० 'अङ्क बाबें ज्ञातव्य हैं।:-- विद्या' का नोट ८पृ० ११०, १११)॥ (१) इस कवि का समय ईस्वी सन् अटटाङ्ग-काल विशेष, एक बहुत बड़ा १३०० के लगभग है ॥ (२) ईसा की दसवीं शताब्दी के मध्य काल परिमाण । ८४ लक्ष श्रुत्य प्रमाण में हुए गङ्गवंशीय महाराज 'मारसिंह' के काल । एक 'अटट' काल का ८४ लाखवां सेनापति 'काडमरस' के वंश में उसकी । भाग प्रमाण वर्ष, (८४ लाख) वर्ष ॥ १६वीं पीढ़ी में इस कवि का जन्म हुआ ८४ लाख का १७वाँ बल (घात ), था। अर्थात् ८४ लाख को १७ जगह रख कर . (३) इसके पिता का नाम 'नागकुमार' परस्पर गुणन करने से जो संख्या प्राप्त हो उतने वर्षों का एक 'अटटाङ्ग' काल होता (४) इसने अपने नामके साथ 'जिन है। ५१६११६६४२०९८७५४०३०,१४५०४३ नगरपति', 'गिरिनगराधीश्वर' आदि ४७७५६१३४४००000,00000000000000 , विशेषण लिखे हैं जिस से जाना जाता है 000000,00000000000000000000,00 कि यह कवि इन नगरों का स्वामी भी था। 000000000000000000,0000000000 (५) इस कवि के पूर्वज 'काडमरस' 0000000000 ( ३३ अङ्क और ८५ शून्य, को जो महाराजा 'मारसिंह' का एक वीर सर्व ११८ स्थान ) वर्षों का एक 'अटंटा। सेनापति था एक बलवान शत्र पर विजय .... Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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