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________________ अन्जनाद्रि बृहत् जैन शब्दार्णव अजू अञ्ज, इन चार वक्षारगिरि और तप्त- भाषा के ग्रन्थ हैं॥ जला, मत्तजला और उन्मत्त जला, इन (क०५६) ३ विभा नदियों से वत्सा, सुवत्सा, अञ्जना सुन्दरी नाटक-इस नाम का महावत्सा, वत्सकावती, रम्या, सुरम्या, एक नाटक प्रन्थ भरतपुर निवासी बाबू रमणीया और महलावती, इन ८ विदेह मंगलसिंह वासवश्रीमाल के पुत्र बाबू। देशों में विभक्त है इन में से रम्या, सुरम्या कन्हैयालाल अजैन ने हिन्दी गद्य पद्य में नोमक देशों की मध्य सीमा पर के पर्वत जैन कथा के आधार पर सन् १८६६ ई. में! का नाम 'अञ्जनात्मा' है। रखकर इस के मुद्रणादि का सर्वाधिकार . (त्रि. ६६७, ६८८) 'श्री बेङ्कटेश्वर प्रेस' बम्बई के स्वामी खेम-1 अंजनादि-पीछे देखो शब्द 'अञ्जन राज श्रीकृष्णदास को दे दिया है, जो गिरि', पृ० २१२॥ प्रथम बार सन् १६०६ई. (वि०सं०१९६६) अंजना नाटक-हिन्दी के सुप्रसिद्ध एक | में उसी प्रेस से मुद्रित हो चुका है। पैन लेखक सवाल विवासी श्रीयुत सु. अञ्जनी-पीछे देखो शब्द 'अञ्जना (१) | दर्शन कवि रचित नाटक ॥ . पृ० २१५ ॥ अञ्जना-पवनञ्जय नाटक-कर्णाटक अञ्जिकजय (पवनंजय)-भरत चक्र देशीय उभय भाषा कवि-चक्रवर्ति 'हस्ति- वर्ती की सवारी के अश्व का नाम । मल्ल' रचित एक संस्कृत भाषा का नाटक अञ्जका-१७ वें तीर्थंकर श्रीकुन्थनाथ ग्रन्थ। के समवशरण की मुख्य साध्वी ( मुख्य। इस कवि का समय विक्रम को चौद आर्यिका या गणनी) का नाम (अ.मा. ह्वीं शताब्दी है । कहा जाता है कि इस अंजुया)। कवि ने एक बार एक मदोन्मत्त हस्ती को दमन किया था। इसी लिये इस का नाम श्री कुन्थनाथ के समवशरण की मुख्य | आर्यिका का नाम 'भाषिता' भी था जो 'हस्तिमल्ल' प्रसिद्ध हुआ । यह गोबिन्द ६०३५. आर्यिकाओं की मुख्य गणनी थी। भट्ट का पुत्र था । पाश्र्वपंडित भादि इस के कई पुत्र थे और श्रीकुमार, सत्यवाक्य, (उत्तर पु० पर्ष ६४ श्लोक ४६ )। देवरबल्लभ और उदयभूषण, यह चार इस नोट-श्वेताम्बर जैन मुनि श्री 'आत्मा' के ज्येष्ठ भ्राता थे और बर्द्धमान इसका एक राम जी रचित ग्रन्थ 'जैन तत्वादर्श'मैं पृ० ३० लघु भ्राता था। लोकपालार्य नामक इस पर 'श्रीकुन्थनाथ' की मुख्य साध्वी का नाम का एक शिष्य था । इस कवि रचित | 'दामिमि' दिया है। अन्य संस्कृत नारक ग्रन्थ, सुभद्राहरण, | अज-(१) शुक्रेन्द्र (९८ स्वर्ग का इन्द्र) विकान्तकौरवीय ( सुलोचना नाटक ), की चौथी पटरानी का नाम ( अ० मा० मैथिली परिणय आदि हैं और कई कनड़ी | अंजू ) i Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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