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________________ ( २१३ ) अंजनगिरि वृहत् जैन शब्दार्णव अंजन चोर (२) देवकुरु भोगभूमि का एक दिग्गज मुख्य प्रतिमा श्रीपार्श्वनाथ भगवान की है। पर्वत । [ ऊपर देखो शब्द 'अञ्जन' (२) यहाँ से पहाड़ के ऊपर जाने के लिये पुरानी पृ० २११ ]" (त्रिगा०६६७) जीर्ण सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। गुहा से एक (३) सीतानदी के दक्षिण दिशा का मील ऊपर जाकर एक प्राचीन सरोघर एक बक्षार पर्वत । [ ऊपर देखो शब्द दर्शनीय है जिसके निकट अन्य एक छोटी 'अंजन' (३) पृ. २१२] ॥ पहाड़ी है । यहाँ दो देवियों का एक स्थान (४) रुचकवर नामक १३वे द्वीप के | है जो 'अञ्जना देवी' और 'सीता देवी' मध्य चारों ओर बलयाकार रुचकगिरि के नाम से प्रसिद्ध हैं। कहते हैं कि अजना नामक पर्वत की उत्तर दिशा के 'वर्द्धमान' और सीता ने बनवास के समय यहाँ नासक कूट पर बसने वाले एक देव का निवास किया था और हनुमान का जन्म नाम । भी यहां ही हुआ था। इसी लिये यहां (हरि. सर्ग ५ श्लो०७०१) दोनों ही मूर्तियां स्थापित हैं और ग्राम व (५) मेरु के भद्रशाल वन का चौथा पर्वत का नाम भी 'अञ्जना' के अधिक कूट और उसका अधिपति देव (अ०मा० )। समय तक यहां निवास करने से उसी के (६) एक जैन-तीर्थस्थान का नाम । नाम पर प्रसिद्ध है। गसिक और त्र्यम्बक, यह एक अतिशय क्षेत्र है जो नासिक यह दोनों ही स्थान हिन्दुओं के प्रसिद्ध शहर से त्र्यम्बक नगर जाते हुए मार्ग में तीर्थ हैं । नासिक शहर से केवल ३ या ४ सड़क से १ मील हट कर दक्षिण दिशा मील और नासिक स्टेशन से मील की को पड़ता है । नासिक से लगभग १४ दूरी पर 'मसाल' ग्राम के निकट श्री मील और यम्बक से ७ या ८ मील पर 'गंजपन्था सिद्ध क्षेत्र है जहां से बलभद्रादि एक 'अजनी' नामक ग्राम के निकट ही ८ कोटि ( ८००००००० ) मुनीश्वरों ने यह तीर्थ एक 'अञ्जनगिरि' नामक पहाड़ी निर्वाण पद प्राप्त किया है। पर है। ग्राम के आस पास बहुत प्राचीन (तीर्थ. द. पृ. ३५) १२ या१३ जीर्ण फूटे टूटे मन्दिर हैं । जिनके द्वारों, स्तम्भों, शिखरों और दीवारों आदि अमनचोर-(१) सम्यक्त कौमुदी कथा पर बहुतसी जैन मूर्तियां दर्शनीय हैं । एक विहित एक 'रूपखुर' नामक प्रसिद्ध चोर ॥ मन्दिर में अखंडित अति प्राचीन जैन उत्तर मथुराधीश 'पद्मोदय' के समय प्रतिमा बड़ी मनोहारिणी है । यहां शाका निवासी एक पखुर' सं. १०६३ का एक शिला लेख भी है। नामक चोर 'अञ्जनचोर' के नाम से प्रसिद्ध यहाँ से लगभग १ मील की ऊंचाई पर था। इसके पासं 'अञ्जनबंटी' या 'अञ्जनपहाड़ी के ऊपर, एर. विशाल गुहा है जो गुटिका' नामक एक मंत्रित औषधि बहुत लम्बी और पहाड़ का पत्थर काट ऐसी थी जिसे नेत्रों में आज लेने से पह कर बनाई गई है । इस गुहा में कई अन्य मनुष्यों की दृष्टि से मरश्य हो जैन प्रतिमाएं बड़ी मनोहर हैं जिन में जाता था । जिह्वालम्पटता वश वह छ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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