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________________ nound ( २०१ ) | अजीवगत हिंसा वृहत् जैन शब्दार्णव . अजीगत हिंसा ७.प्रस्तार--अक्षों और संख्याओं सहित | ३. द्वितीय पंक्ति में द्वितीय पिंड के सर्व कोष्ठकों के समूह रूप पूर्ण कोष्ठ को प्रस्- | जितने अक्ष हो उतने कोष्ठक बनाकर उनमें तार कहते हैं। 'प्रस्तार' को 'गूढ़यंत्र' भी कूम से उस पिंड के अक्षों को लिखें और इस कहते हैं। . पंक्ति के पहिले कोष्ठक में अक्ष के साथ शून्य ८. परिवर्तन-सर्व कोष्ठकों पर दृष्टि लिखें, दूसरे कोष्ठक में वह अङ्क लिखें जो प्रथम पक्ति के अन्तिम कोष्ठक में लिया था, घुमाते हुए अपनी आवश्यक्तानुसार यथाविधि इससे आगे के तीसरे आदि कोष्ठकों में दूसरे उनमें से अक्षों या संख्याओं कोग्रहण करने की क्रिया को परिवर्तन कहते हैं । इस परिवर्तन कोष्ठक के अङ्क का द्विगुण, त्रिगुण आदि अङ्क ही का नाम 'अझ परिवर्तन' या 'अक्ष-संसार' कम से लिव लिख कर यह द्वितीय पंक्ति पूरी कर दे। भी है। ४. तृतीय पंक्ति में तृतीय पिंड के अक्षों ६.नष्ट- चाहे जेथवे आलाप का नाम की संख्याके बराबर कोष्ठक बनाकर कमसे सर्व जानने की किया या विधि को नष्ट कहते हैं । | अक्ष लिखै और इस पंक्तिके पहिले कोष्ठक में | १०. उहिष्ट--आलाप के शात नाम से शन्य रखें। दूसरे कोष्ठक में यह अङ्क लिखें। यह जानना कि यह आलाप केथवां है, इस जो इस पंक्ति से पूर्व की प्रथम और द्वितीय किया या विधि को , उद्दिष्ट या समुद्दिष्ट पंक्तियों के अन्तिम अन्तिम कोष्ठकों के अङ्कों कहते हैं। का जोड़फळ हो। फिर तीसरे आदि आगे! नोट ११--गूढ़ यंत्र या प्रस्तार बनाने के सर्व कोष्ठकों में कम से दूसरे कोष्ठक का की विधि भी नीचे लिखी जाती है जिसे सोख द्विगुण, त्रिगुण, आदि अङ्क लिख लिख कर। लेने से शील गुण के १८००० ( १८ हजार ) | यह तीसरी पंक्ति भी पूर्ण कर देवे ॥ भेदों, प्रमाद के ३७५०० ( ३७ हजार ५ सौ) ५. चतुर्थ आदि आगे की सर्व पंक्तियां। भेदों, और दिगम्बर मुनि के ८४००००० भी उपयुक्त रीति ही के अनुसार कोष्ठक बना (८३ लाज) उत्तरगुणों आदि के गूढ़यंत्र भी बना कर भरदै । यह ध्यान रहे कि कोष्ठको बनाकर उन भेदों या गुणादिक के अलग | में अङ्क भरते समय प्रथम पंक्ति के अतिरिक्त अलग नाम हम बड़ी सुगमता से जान सकते हर पंक्ति के प्रथम कोष्ठक में बो शून्य हो लिग्णां जायगा, दूसरे कोष्ठक में पूर्व की | १. जिस द्रव्य, पदार्थ या गुण आदि सर्व पंक्तियों के अन्तिम अन्तिम कोष्ठकों के || के विशेष भेदों का प्रस्तार बनाना हो उसमें अङ्कों का जोड़फळ लिखा जायगा और आगे जितने पिंड हो उतनी पंक्ति बनावें। के तीसरे आदि कोप्ठकों में दूसरे कोष्ठक का। २. प्रथम पंक्ति में प्रथम पिंड के जित- | विगुण. त्रिगुण, चतुर्गुण आदि क्रम से अन्तिम ने भेद (अक्ष) हो उतने कोष्टक बना कर कोष्ठक तक लिखा जायगा। . . उन कोष्ठकों में कूमसे उस पिंड के भेद (अक्ष)| इस प्रकार यथा आवश्यक प्रस्तार बनाया। लिखें और उन अक्षों के साथ कम से १,२,३, | जा सकता है । आदि अङ्क लिखदें। नोट १२--बिना प्रस्तार बनाये ही - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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