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(१६५ ) अजीवगत हिंसा वृहत् जैन शब्दार्णव
अजीवगत हिंसा मानसिक अारम्भजन्य हिंसा" यह ६३ वां का सुगमता के लिये नीचे दिये जाते हैं:-. । भेद ज्ञात हो गया ॥
१. क्रोधवश स्वकृत मानसिकनोट५-दूसरे और चौथे उदाहरणों में
संरम्भअन्य हिंसा यदि ३ का अङ्क प्रथम पंक्ति से न लेकर २. क्रोधवश स्वकृत मानसिकद्वितीय पंक्ति से ही ले लिया जाता तो अभीष्ट
समारम्मजन्य , जोड़ ३० या ९३ तीन ही प.क्तयों तक पूरा ३. क्रोधवश स्वकृत मानसिक हो जाने से और प्रथम पंक्ति में शून्य न होने
आरम्भजन्य से यह पंक्ति बिना अङ्क या शन्य लिये ही | ४. क्रोधवश स्वकृत पाचनिक- . . छूट जाती । इसो लिये द्वितीय पंक्ति से ३ |
संरम्भजन्य , का अङ्क न लेकर शन्य ही लिया गया है ॥ ५. क्रोधवश स्वकृत वाचनिकनोट ६-यदि जीवगत हिंसा के १०८
समारम्भजन्य , भेदों में से किसी भेद के शात नामके सम्बन्ध ६. क्रोधवश स्वकृत वाचनिकमें हमें यह जानना हो कि अमुक नाम वाला
आरम्भजन्यः - भेद गणना में केथवाँ है तो निम्न लिखित | ७. क्रोधवश स्वकृत कायिक- .. विधि से यह भी जाना जा सकता है.:
संरम्भजन्य " विधि-ज्ञात नाम जिन चार अङ्गों या | ८. क्रोधवश स्वकृत कायिकशब्दों के मेल से बना है वे शब्द ऊपर दिये
समारम्भजन्य.. हुए प्रस्तार में जिन जिन कोष्ठों में हो उनके | ६. क्रोधवश स्वकृत कायिकअङ्क, या शून्य और अङ्क जोड़ने से जो कुछ
__ आरम्भलत्य जोड़ फल प्राप्त होगा वही अभीष्ट अङ्क यह
१०. क्रोधवश कारित मानसिक बतायेगा कि ज्ञात नाम केथवां भेद है॥
संरम्भजन्य , उदाहरण- "लोभवश-कारित-मान- | ११. क्रोधवश कारित मानसिकसिक-आरम्भजन्य हिंसा' यह नाम जीवगत.
समारम्भजत्य. , हिंसा के १०८ भेदों में से कंथवां भेद है ? ।
१२. क्रोधवश कारित मानसिक
आरम्भजन्य , ज्ञात नाम के चारों अङ्गरूप शब्दों को
१३. क्रोधवश कारित वाचनिकप्रस्तार में देखने से 'लोभवश' के कोष्ठ में
संरम्भअन्य. .. ८१, 'कारित' के कोष्ठ में ६, 'मानसिक' के
१४. क्रोधका कारिल वाचनिककोष्ठ में शून्य, और आरम्भ जन्य-हिंसा के
समारम्भजन्य कोष्ठ में ३, यह अङ्क मिले । इन का जोड़ फल | १५. क्रोधवश कारित वाचनिक१३ है । अतः जीवगत हिंसा का ज्ञात नाम | ..
आरम्भजन्य , ९३ वां भेद १०८ भेदों में से है। | १६. क्रोधवश कारित कायिकनोट ७-ऊपर दिये हुए प्रस्तार की
___संरम्भजन्यः , सहायता से जीवगत हिंसा के १०८ भेदों के | १७. कोधवश कारित कायिकसर्व अलग २ नाम निकाल कर बाल-पाठकों |, .
समारम्भजन्य
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