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________________ ( १६४ ) अजीवगत हिंसा वृहत् जैन शब्दार्णव अजीवगत हिंसा शब्द (अक्ष) कम से ले लेने या लिख लेने पर शून्य ( स्वकृत ). शूय (मानसिक ), अभीष्ट भेद का नाम प्राप्त हो जायगा । और ३ ( आरम्भजन्य हिंसा) लेने से ज्ञात । (२) यह ध्यान रहे कि ज्ञात-जोड़ प्राप्त | जोड़ ३० प्राप्त होता है । अतः 'मानवशकरने के लिये प्रत्येक ही पंक्ति का कोई न स्वकृत-मानसिक-आरम्भजन्य हिंसा', यह ३० कोई अङ्क अथवा शन्य लेना आवश्यकीय है ॥ | धाँ अभीष्ट भेद है। (३) यह भी ध्यान रहे कि एक पंक्ति ___उदाहरण तीसग-हमें ५४ वां भेद का यथाआवश्यक कोई एक ही अङ्क अथवा | जानना अभीष्ट है। शून्य लिया जावे ॥ . यहां उपर्युक्त विधि के नियमों को (४) सुगमता के लिये यह भी ध्यान गम्भीर दृष्टि से विचारे बिना और शब्द रहे कि अभीष्ट जोड़ प्राप्त करने के लिये च 'यथाआघश्यक' पर पूर्ण ध्यान न देकर यदि तुर्थ पंक्ति से प्रारम्भ फरके ऊपर ऊपर की बड़े से बड़ा अङ्क चतुर्थ पंक्ति से ५४ ले पंक्तियों के कोष्ठकों से यथाआवश्यक बड़े लिया जाय तो चारों ही पंक्तियों का से बड़ा अङ्क अथवा शून्य लिया जाय ॥ . ज्ञात जोड ५४ लाने के लिये तृतीय और उदाहरण-जीवगत हिंसा के १०८ द्वितीय पंक्तियों से तो हम.शन्य ले लेंगे भेदों में से हमें २५वे भेद का नाम जानना | परन्तु प्रथम पंक्ति के किसी कोष्ठक में शून्य अभीष्ट है। न होने से इस पंक्ति से कोई अङ्क न लिया जा उपयुक्त विधि के अनुकूल | सकेगा जो उपयुक्त नियम विरुद्ध है और यदि अन्तिम पंक्ति से शून्य (क्रोधवश ), तृतीय कोई अङ्क लेंगे तो जोड़ ५४ से बढ़ जायगा। पक्ति से १८ ( अनुमोदित), द्वितीय पंक्ति | अतः हमारी आवश्यक्तानुकूल बड़े से से ६(कायिक ), और प्रथम पंक्ति से १ बड़ा अङ्क चतुर्थ पक्ति से ७ (मानवश ), (संरम्भजन्य हिंसा) लेने से ज्ञात जोड़ तृतीय से १४ (अनुमोदित), द्वितीय से २५. प्राप्त होता है। अतः इन ही शन्य ६ (कायिक ), और प्रथम से ३ (आरऔर अङ्कों के कोष्ठकों में लिखे शब्दों म्भजन्य हिंसा) लैने से ज्ञात जोड ५४ (अक्षों) को क्रम से ले लेने या लिख लेने प्राप्त हो जाता है। अतः 'मानवश अनुमो. पर "कोधवश-अनुमोदित-कायिक-संरम्भ-दित-कायिक-आरम्भजन्य हिंसा', यह ५४वां | जन्य-हिंसा', यह २५वें भेद का नाम जान | | अभीष्ट भेद है । लिया गया ॥ उदाहरण चौथा- ६३ वा भेद हमें उदाहरण दूसरा-हमें जीवगत हिंसा हिरण दूसरा- जात हता| जानना है। के १०८ भेदों में से ३०वां भेद जानना उपयुक्त दिये हुए नियमों के अनुकूल अभीट है। | बड़े से बड़े अङ्क चतुर्थादि पंक्तयों से कम से . उपयुक्त विधि के अनुकूल बड़े | ८१,8, ०, ३ लैने से इनका जोड़ ६३ प्राप्त से बड़े अङ्कचतुर्थ, तृतीय, द्वितीय और | होता है। अतः इन अङ्कों वाले कोष्ठों में प्रथम पंक्तियों से कम से २७. (मानवश ), | लिखे शब्द क्रम से लैने पर "लोभवश-कारित Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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