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________________ किरिया' )॥ ( १६९ ) | अजीव वृहत् जैन शब्दार्णव अजीवकाय-असंयम के नाम क्रम से निम्न लिखित हैं:- पांचों में से प्रत्येक का विशेष स्वरूपादि १. जया, २. विजया, ३. अजिता, | यथा स्थान देखें। ४. अपराजिता.५. जम्भा,६. मोहा,७. स्तम्भा. | अजीव-अप्रत्याख्यानक्रिया-मदिरा ८. स्तम्भिनी । (प्रतिष्ठा. अ. ३, श्लोक २१४, आदि अजीव वस्तुओं का प्रत्याश्यान २१९)॥ (निराकरण, तिरस्कार ) न करने से होने । (४) भाद्रपद कृ० ११ की तिथि का वाला कर्म धन्धन; अप्रत्याख्यानक्रिया का 1 नाम भी 'अजिता' है । इसी को 'अन्या एक भेद (अ. मा. 'अजीव-अपचक्खण | एकादशी', 'अजा ११' या 'जया ११' भी | कहते हैं। (५) चौये तीर्थंकर श्री अभिनन्दन अजीव-अभिगम ( अजीवाभिगम )नाथ की मुख्य साध्वी । (अ.मा. अजिपा, | गुणप्रत्यय अवधि आदि शान से पुद्गअजिआ)॥ लादि का बोध होना ( अ. मा.)॥ अजीव-जीव-रहित, निर्जीव, अचेतन, अजीव-आनायनी-अजीव वस्तु मँगाने अड़ पदार्थ, जीव के अतिरिक्त विश्व भर के से होने वाला कर्मबन्ध; आनाया क्रिया अन्य सर्व पदार्थ; विश्व रचना के दो अङ्गों | का एक भेद (अ. मा. 'अजीवआणवया दो हेयोपादेय द्रव्यों-जीव और णिया' )॥ अजीव-में से एक अङ्गया एक हेय द्रव्य । भजीव-आरम्भिका-अजीघ कलेवर के जीव, अजीव, आश्रव, बन्ध, संवर, नि. | निमित्त आरम्भ करने से होने वाला कर्मजरा, मोक्ष, इन सात प्रयोजनभूत (शुद्धा बन्ध; आरम्भिका क्रिया का एक भेद ।। त्मपद यो मक्ति ग्द की प्राप्ति के लिये (अ.मा.)॥ प्रयोजन भूत ) तत्वों या पुण्य और पाप सहित नव प्रयोजनभूत पदार्थों में से अजीव-प्राज्ञापनिका-अजीव सम्बंधी दूसरा प्रयोजनभूत तत्व या पदार्थ ॥ आशा करने से होने वाला कर्मबन्ध; आ अजीव बह तत्त्व यो पदार्थ है जो दर्शनो- शापनिका क्रिया का एक भेद । ( अ. मा. पयोग और ज्ञानोपयोग रहित (देखने और 'अजीव-आणवणिया' )॥ जानने की शक्ति रहित) है अर्थात् जो चेतना अजीव-काय-जीवरहित काय; धर्मास्तिगुण वर्जित है। इस के ५ भेद हैं (१) काय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गल (२) धर्मास्तिकाय (३) अधर्मास्ति पुद्गलास्तिकाय, यह चार द्रव्य, पंचाकाय (४) आकाश और (५) काल ॥ स्तिकाय में से एक जीवास्तिकाय को ___ अजीव द्रव्य के इन उपयुक्त पाँचौ छोड़ कर शेष चार द्रव्य; षट द्रव्य में से भेदों में से प्रथम भेद “पुद्गल द्रव्य" तो जीवद्रव्य और कालद्रव्य इन दो को छोड़ स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण गुण विशिष्ट ! कर शेष चार द्रव्य ॥ और शब्द पर्याय युक्त होने से 'रूपी द्रव्य' है और शेष चारों 'अरूपी दव्य' हैं।इन | अनावकाय-असयम-वस्त्र पात्र आदि । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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