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________________ | अजितपुराण वृहत् जैन शब्दार्णव अजितब्रह्म नोट१-कविरत्न 'रन्न' वैश्यकुल भूषण चार्य 'श्री नेमचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती' जिन्हों| जिनवल्लभेन्द्र' के पुत्र थे । इनकी माता का | ने चामुण्ड राय की प्रेरणा से महान ग्रन्थ नाम 'अब्बलब्बे'था । इनका जन्म शक संवत् 'श्री गोमट्टसार' की रचना की, इसी कविरत्न -८७१ में तृदुबोल' नामक ग्राम में हुआ था। 'रन्न' के समकालीन थे। कबिरन, कविचक्रवर्ती, कविकंजरांकश, नोट २.-अजितपुराण जिस दानउभय भाषाकवि आदि इनकी पदवियां थी। चिन्तामणि स्त्री-रत्न "अत्तिमन्चे" के सन्तोयाह राज्यमान्य कवि थे। राजा की ओर से षार्थ रचा गया था वह उपयुक्त चालुक्य स्वर्णदड, चँवर, छत्र, हाथी आदि इनके साथ | वंशी राजा 'आहवमल्ल देव' के मुख्याधिकारी चलोथे। इनके गुरु 'अजितसेनाचार्य थे। 'मल्लिप' की सुशीला पुत्री थी। यह इसी गंगकुलचूड़ामणि महाराजा राचम' का राजा के महामंत्री 'दहिप' के सुपुत्र 'नागदेव' सुप्रसिद्ध जैन मंत्री 'चामुण्डराय' इस कवि- को विवाही गई थी जिसे बड़ा साहसी और रत्न का गुरु-भ्राता और सर्व प्रकार सहायक पराक्रमी देखकर चालुक्य चक्रवर्ती 'आहवव पोषक था। चालुक्य वंशी राजा आहवमल्ल' | मल्ल' ने अपना प्रधान सेनाप | मल्ल' ने अपना प्रधान सेनापति बना दिया। भी इस कविरलका पोषक था। इस कविरल एक युद्ध में इस नागदेव के काम आजाने पर रचित 'साहलभीम विजय' या 'गदायुद्ध' इस की छोटी स्त्री 'गुंडमब्बे' तो इसके साथ | नामक एक अन्य ग्रन्थ भी इस समय उपलब्ध | सती होगई परन्तु 'अत्तिमब्बे' अपने प्रिय पुत्र है जो १० आश्वासों में विभक्त है। यह भी 'अन्नगदेव' की रक्षा करती हुई व्रतनिष्ठ होकर गद्य पद्य मय (चम्यू) हाहै। इस में महाभारत रहने लगी। जैन धर्म पर इसे अगाध श्रद्धा थी। कथा का सिंहावलोकन करके चालुक्यनरेश | इसने स्वर्ण-मय रत्न जड़ित एक संहस्र 'आहवमल्ल' का चरित्र लिखा गया है जिसमें (१०००) जिनप्रतिमायें निरमाण कराकर प्रतिकविरत्न ने अपने पोषक 'आहबम' का ठित कराई। बड़ी उदारता से लाखों मुद्रा पांडव 'भीमलेन' से मिलान किया है। यह का दान किया। दान में यह इतनी प्रसिद्ध बड़ा ही विलक्षण ग्रन्थ है। कर्णाटक कवि हुई कि लोग इसे 'दानचिन्तामणि' के नाम से चरित्र का लेखक इस कविरत्न के सम्बन्ध में इसका सम्मान करते थे । ( पीछे देखो शब्द लिखता है कि 'रन्न' कवि के ग्रन्थ सरस 'अजितनाथ पुराण' )॥ और प्रोढ़ रचना युक्त हैं । उसकी पद-सामग्री, अजितब्रह्म (अजित ब्रह्मचारी )-यह रचना-शक्ति और बन्ध-गौरव आश्चर्य- श्री देवेन्द्र कीर्ति भट्टारक के शिप्य १६ वीं जनक हैं। पद प्रवाहरूप और हृदयग्राही हैं। शताब्दी के एक प्रसिद्ध विद्वान ब्रह्मचारी इत्यादि...... ॥ इस कवि की अभिनव पंप, थे । यह गोलभंगार ( गोलसिंघाड़े) नयलेन, पाश्चे मधुर मंगरस, इत्यादि कार्णा- वंशी वैश्य थे । इन के पिता का नाम टिक भाषा के बड़े बड़े कवियों ने भी बहुत . 'वीरसिंह' और माता का नाम 'धीधा' या प्रशंसा की है । एक "रन्नकन्द' नामक 'पृथ्वी' था। श्री विद्यानन्दि' भट्टारक के ग्रन्थ भी इसी कविरत्न रचित है जो आदेश से इन्होंने भृगुकच्छ ( भिरोंच ) इस समय उपलब्ध नहीं है। सुप्रसिद्ध आ-| में जो बम्बई प्रान्त में नरबदा नदी के तट Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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