________________
अजित वृहत् जैन शब्दार्णव
अजित (९) जिस दिन इन्होंने निर्वाण पद शत्रु' जिसने लगभग ७१ लाख पूर्व प्राप्त किया उसी दिन लगभग १००० अन्य की वय में परमकृष्ण लेश्यायुक्त शरीर | महा मुनियों ने भी इनका साथ दिया, त्यागसप्तम नरक में जन्म लिया,यह दोनों अर्थात् अढाई द्वीप भर में कहीं न कहीं 'श्रीअजितनाथ' तीर्थङ्करके समकालीनथे ॥ से निर्वाण पद पाया । (देखो नीचे दिये (११) श्री सम्मेद शिखर के जिस 'सिकोष्ठ की क्रम संख्या ७८ का फट नोट ) | द्धकूट' नामक कूट से इन्हों ने निर्धाण पद
(१०.) द्वितीय चक्रवर्तिः 'सगर' पाया उससे वर्तमान अवसर्पिणी काल के जिसने लगभग ७२ लाख पूर्व काल | गत चतुर्थ विभाग में एक अरब अस्सी की वय में निर्वाण पद पाया और | 'करोड ५४ लाख ( १८०५४००००० ) अन्य ११ अङ्ग १० पूर्व पाठी द्वितीय रुद्र जित- | मुनियों ने भी मुक्तिपद पाया ॥.
श्री अजितनाथ तीर्थङ्कर के ८४ बोल का विवरण कोष्ठ ।
क्रम संख्या
बोल
विवरण
१ पूर्व जन्म
४. राज्यपद
नाम
विमलवाहन २. स्थान
अम्बद्वीप, पूर्वविदेह क्षेत्र सीता नदी के
दक्षिण, वत्सदेश, मसीमा नगरी | ३. शरीरवर्ण
स्वर्ण समान
मंडलीक ५. दीक्षागुरु
श्री अरिन्दम ६. मुनिपद
११ आङ्ग पाठी अन्तिम व्रत
सिंहनिःक्रीडित व्रत संन्यास
प्रायोपगमन ९. संन्यासकाल
१मास १०. गति -
"विजय" अनुत्तर विमान ( आयु ३३ साग
रोपम) गर्भ . . .
| १. स्थान जहां से गर्भ में आये | "विजय'' अनुत्तर विमान १२ | २. गर्भस्थान
अयोध्यापुरी (साकेता) १३ । ३. पिता
अयोध्या नरेश "जित शत्रु" ( नृपजित)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org