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हिन्दी जैन ग़ज़ट
[ १६ दिसम्बर सन् १६२४ ई०]
की
इसी वृहत् कोष की समालोचना पीछे इसी कोष के पृष्ठ २ पर देखें
वीर
इसी वर्ष के विशेषांक (अङ्क ११, १२ वर्ष २)
में
प्रकाशित
इस वृहत् कोष के सम्बन्ध
मैं
श्रीयुत मि० चम्पतराय जी वैरिस्टर-एट-ला, हरदोई
की सम्मति
1
" इस बहुमूल्य पुस्तक का पहिला भाग अभी छा है और उसे मैंने पढ़ा है । वास्तव में यह अपने ढंग का निराला कोष होगा जो सब बातों में परिपूर्ण ( Comprehensive and Exhaustive ) होगा । कमसे कम इसके विद्वान् लेखककी नीयत तो यही है कि इसे जैन ऐनसाइक्लोपीडिया ( Jain Encyclopædia, विश्वकोष ) बनाया जावे । लेखक की हिम्मत, विषद उत्साह, परिश्रम, खोज और ख़ूबी की प्रशंसा करना वृथा है; स्वयं इस शब्दार्णव के पृष्ठ उनकी प्रशंसा पूर्णतयः कर रहे हैं ! मैंने दो एक विषयों को परीक्षा की दृष्टि से देखा । लेख को गुंजतक तथा पेचीदगी से रहित पाया । उसमें मुझे दिखावे के पांडित्य की नहीं प्रत्युत वास्तविक पांडित्य ही की झलक नज़र आई । यह कोष श्रीयुत मास्टर बिहारीलाल जी की उम्र भर की मिहनतका फल है। यूं तो उन्होंने और भी बहुत से ट्रैक्ट लिखे हैं परन्तु प्रस्तुत कृति अपने ढँगमें अपूर्व है ।"
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