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________________ STERS अजित वृहत् जैन शब्दार्णव अजित ७. इनके शरीर का रुधिर रक्तवर्ण नथा ६. इन का सम्पूर्ण आयुकाल लगनग किन्तु दुग्ध जैसा स्वेतवर्ण था। इनका शरीर ७२ लक्ष पूर्व का था जिस में से चतुर्थ अति सुन्दर, सुगन्धित, समचतुरस्न, और भाग अर्थात् लगभग १८ लक्ष पूर्व की अष्टाधिक सहस्र (१००८) शुभ लक्षण युक्त वय तक यह कुमार अवस्था में रहे । पिता था। इनके शरीर का संहनन बजूवृषभना के दीक्षित होने के पश्चात ५३ लक्ष पुर्व राब और अतुल्य बलवान था। सदैव हित और एक पूर्वाण काल तक मंडलेश्वर राज्यमित प्रिय वचन बोलना उन का स्वभाव वैभव का सुख भोगते रहने पर भी यह था॥ भोगों में किसी समय लिप्त न हुए। ८. इन के शरीर का पूर्ण और कान्ति राज्य कार्य को जिस उत्तम से उत्तम ! ताये स्वर्ण-समान देदीप्यमान और ऊँ प्रबन्ध और पूर्ण योग्यता के साथ इन्होंने चाई ४५० धनुष अर्थात् ९०० गज थी । किया उसके विषय में इतना ही बता देना। इम के शरीर के १००८ शुभ लक्षणों में से | पर्याप्त होगा कि इन सर्व कलापूर्ण । एक 'गज चिन्ह' मुख्य था जो इन के वाम | और विद्यानिपुण महानुभाव ने प्रजा के चरण की पगतली में था। उपकार में अपनी शक्तिका कोई अंश बचा किन्तु निम्न लिखित एक व्यक्ति तो पूरे बारह घर्ष तक नित्य प्रति भोजन पान ग्रहण करता हुमा भी मल-त्याग बिना पूर्ण निरोग और कष्ट पुष्ट बना रहा : १. श्रीमान् बाबू प्यारे लाल जी जमींदार बरौठा, डाकखाना हागंज, जिo अलीगढ़ जो एक प्रतिष्ठित और सुप्रसिद्ध पुरुष हैं और जो ज्योतिष. वैद्यक, गणित, इतिहास, भूगोल. कृषि, वाणिज्य, शिल्प, इत्यादि अनेक विद्याओं और कलाओं सम्बन्धी अनेकानेक ग्रन्थों के रचयिता व अनुवादकर्ता हैं, निज रचित 'जौहरेहिकमत' नामक उर्दू ग्रन्थ की सन् १८६८ ई० की छपी द्वितीय आवृत्ति के सप्तम भाग 'इलाजुलअमराज़' के पृष्ठ ७ पर संख्या (२) में निम्न समाचार लिखते हैं : "मौजा सासनी, तहसील इग्लास, जिला अागढ़ में मेरे मासू का साला एक शरूस । पटवारी है । उसकी बारात गई । रास्ते में वह एक करके पास पास्त्राने को बैटा । उसी रोज से उसका पाखाने जाना बन्द होगया । वह तन्दुरुस्त रही। खूब वाता पीता जवान होगया। मगर'बारह बरस तक कभी उसको पाखाने की हाजत मोहुई न दग्त आया। डाक्टरी इलाज कराया मगर बेसूद । आरिवार एसकी औरत मर गई । फिर दूसरी शादी हुई । उस वक्तसे खुद बखुद बह पाखाने जाने लगा और दस्त आने लगा। यद्यपि इस कोषके लेखक ने इस १२ वर्ष तक मल त्यागन करने वाले व्यक्तिको स्वयम् नहीं देखा तथापि इसके पितामह के एक चचेरे भ्रात स्वर्गीय श्रीमान् लाला मिटन लाल जी सबओवरसियर ने जो उस समय स्थान हागंज जिला अलीगढ़ में कार्य करते थे स्थयम् उसे कई बार मल न त्याग करने की अवस्था में पूर्ण निरोग और स्वस्थ्य देखा था। जिससे उपयुक्त लेख की पूर्णतयः पुष्टि हो जाती है। - २. उपयुक्त व्यक्ति के अतिरिक्त चार चार, पाँच पाँच, आठ आठ, दश दश, या ग्यारह ग्यारह दिवश के पश्चात् मल त्याग करने वाले निरोग नीया पुरुष तो कई एक सुनने और देखने में आये हैं । इस कोषके पाठकों में से भी कुछ न कुछ महाशयों ने ऐसे कोई न कोई प्यक्ति अवश्य देखे या सुने होंगे। ३. इस कोष के लेखक की पुत्रवधू को लगभग सदैव ही नित्य प्रति दोनों समय उदर - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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