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________________ "अजाता . वृहत् जैन शब्दार्णव अजित भजाता-साधु के तजने योग्य वस्तु को तीर्थकर 'श्री महावीर स्वामी' के निर्वाण यत्नाचार पूर्वक त्यागना ॥ . काल से लगभग ४२ सहस्र वर्ष कम ७२ . (अ. मा. अजाया ) ॥ | लक्ष पूर्व अधिक ५० लक्ष कोटि सागभजानफल-अज्ञातफल ॥ रोपमकाल पहिले हुआ॥ २२ प्रकार के अभक्ष्य पदार्थों में 'अ- नोट :-८४ लक्ष वर्ष का एक पूर्वाङ्ग जानफल' भी एक पदार्थ माना जाता है। काल और ८४ लक्ष पूर्वाण का एक पूर्वकाल (पीछ देग्ने शब्द 'अवाद्य' ) ॥ होता है। ४१३४५२६३०३०२०३१७७७४९५ १२१६२०००००००००००००००००००० (२७ अजित-[१] अजेय जो किसी से जीना न अङ्क और २० शन्य, सर्व सैंतालीस अङ्क जा सके, नेत्र रोग निवारक एक तैल वि. प्रमाण ) वर्ष का एक व्यवहार पल्योपमकाल शेष, एक प्रकार का जइरमुहग, एक प्र. और १० कोडाकोड़ी अर्थात् १ पद्म (१०००. कार का जहरीला चूहा । विष्णु, शिव, ००००००००००००) व्यवहार पल्योषमकाल शुद्धात्मा, परमात्मा ॥ का १ व्यवहार सागरोफ्मकाल होता है। [-] द्वितीय तीर्थंकर का नाम । वर्त- (देखो शब्द 'अङ्कविद्या' का नोट =)॥ मान अवसर्पिणी काल के गत चतुर्थ अतः ७०५६०००००००००० वर्ष का एक विभाग 'दुःखम सुखम' नामक काल में पूर्व काल और ४१३४५२६३०३०८२०३१७७ हुए २४ तीर्थङ्करों (धर्मतीर्थ प्रवर्तक | ७४४५१२१९२००००००००००००००००००००० महान पुरुषों ) में से द्वितीय तीर्थका का ००००००००००००००० (२७ अङ्क और ३५ नाम 'अजित' या 'श्री अजितनाथ' है ॥ शन्य, सर्व ६२ अङ्क प्रमाण ) वर्षों का एक १. इन्होंने इक्ष्वाकवंशी काश्यप गोत्री व्यवहार सागरोपमकाल होता है। . अयोध्या नरेश महाराज 'जितशत्रु' (नृप ३. जिस रात्रि को 'श्री अजितनाथ' जित ) की पटरानी 'विजयादेवी' (विज अपनी माता के शिशुकुक्षि अर्थात् मभ में यसेना ) के गर्भ में शुभ सिती ज्येष्ठ कृष्ण आये उस रात्रि के अन्तिम भाग में लकी ३० ( अमावस्या ) की रात्रि के पिछले प्र माता ने निम्न लिखित १६ शुभ स्वप्न हर 'रोहिणी' नक्षत्र में विजय नामक अनु देखेःतर विमान से आकर और दश दिवश (१) स्वेत ऐरावत इस्ती । अधिक अष्टमास गर्भस्थ रह कर नवम | (२) गम्भीर शररता एक पुष्ट स्वेत वृषभ मास में शुभ मिती माघ शुक्ल १० को अर्थात् बैलग। प्रातःकाल रोहिणी नक्षत्र में जन्म धारण (३) निर्भय विचाता हुआ केहरिसिंही. किया ॥ (४) लक्ष्मीदेवी जिसे दी स्वेत हस्ती अपनी ___२. इन का जन्म प्रथम तीर्थङ्कर 'श्री अपनी सूंड में स्वच्छ जल भर कर स्लान । ऋषभदेव' के निर्वाण गमन से लगभग ७२ | · कर रहे थे। लक्ष पूर्व काल कम ५० लक्ष कोटि सागरो- | (५) आकाश में लटकी दो सुगन्धित पुष्पप्रमकाल पीछे, और अन्तिम अर्थात् २४वे | . मालाएँ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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