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अज
( १५८ ) अच्युतकल्प
वृहत् जैन शब्दार्णव १६. इस स्वर्ग से आयु पूरी करके यहां त्रिपर्वा, दश पविका, शत पत्रिका, सहस्र के इन्द्रादिक देव कर्म भूमि के ६३ शलाका पु- | पर्विका, लक्ष पर्घिका, उत्पातिनी, त्रिपारुषों में या साधारण मनुष्यों में ही यथा योग्य तिनी, धारिणी, अन्तर्विचारिणी, जंलगता, जन्म धारण करते हैं ।
अग्निगति, सर्वार्थसिद्धा, सिद्धार्था, जयंती, - २०. देवगति में आकर उत्पन्न होने मङ्गला, जया, प्रहारिणी, अशय्याराधिनी, वाले सर्व ही जीव 'भवप्रत्यय अवधिशान' विशल्पाकारिणो, संजीवनी, व्रणरोहिणी, सहित उत्पाद शैय्या से एक अन्तरमुहूर्त में शक्तिविषमोचनी, सवर्णकारिणी, मत संषट पर्याप्ति पूर्ण सुगन्धित शरीर युक्त जन्म जीवनी, इत्यादि ॥ धारण कर लेते हैं ।
(हरि० पु० सर्ग २२ श्लोक ५६-७३ )॥ नोट -देखो श द 'कल्प' ॥
नोट २-रोहिणी, प्रशप्ति, वजूशृङ्खअच्युत-कल्प पीछे देवो शब्द 'अच्युत'
ला, वजांक्षा, जाम्बुनन्दा, पुरुषदत्ता, काली,
महाकालो, गौरी, गान्धारी, ज्वालामालिनी, अच्युत-स्वर्ग नोटों सहित ॥
मानवि शिखंडिनी, बैरोटी, अच्युता',मानसी, अच्युता-(१) अनेकदिव्य विद्याओं में से महानानली, यह १६ भी विद्या देवियां हैं एक विद्या का नाम ॥
जिनमें से अच्युता चौदह्रीं विद्या का नाम नोट -अष्ट गन्धर्व विद्या-मनु, मा- है ॥ नव, कौशिक, गौरिक, गान्धार. भूमितुण्ड,
(प्रतिष्ठासारोद्धार )॥ मूलवीर्यक, शंकुक। इन अष्ट विद्याओं का (२) छठे और १७वें तीर्थङ्कर श्री प. नाम आर्य, आदित्य, व्योमचर आदि भी है ॥ मप्रभु और श्री कुन्थनाथ की शासन देवी
भष्ट दैत्य विद्या-मातङ्ग, पाँडुक, (अ० मा० अच्चु पा)। आगे देखो शब्द काल, स्वपाक, पर्वत, वंशालय, पांशुमूल,
'अजिता ॥ वृक्षमूल । इन अष्ट विद्याओं को पन्नग- अच्युतावतंसक-अच्युत स्वर्ग के उस विद्या और मातङ्ग विद्या भी कहते है ॥ श्रेणीबद्ध विमान का नाम जिस के मध्य
यह १६ दिग्य विद्याएँ अनेक अन्य | में अच्युतेन्द्र की 'अमरावती' नामक राजदिव्य विद्याओं की मूल हैं जिनमें से कुछ धानी (इन्द्रपुरी) बसती है। (देखो शब्द के नाम यह हैं-प्राप्ति, रोहिणी, अङ्गारि- 'अच्युत' नोटौ सहित ) ॥ णी, गौरी, महागौरी, सर्व विद्या प्रकर्पिणी,
अच्यतेन्द्र-'अच्युत' नामक १६वें स्वग श्वेता, महाश्वेता, मायरी, हारी, निर्वशाद्वला, तिरस्कारिणी, छाया, संक्रामि- |
का इन्द्र । देखो शब्द "अच्युत" नोटों णी, कूष्मांडगणमाता, सर्च विद्याविराजि
सहित ॥ ता, आर्यकूष्मांडो, अच्युता, आर्यवती, अज-(१) जन्मरहित, अंकुर उत्पन्न करने | गान्धारी, निवृति, दंडाध्यक्षगणा, दंडभूत- की शक्तिरहित, त्रिवार्षिक यव या तुषसहस्रक, भद्रा, भद्रकाली, महाकाली, रहित शालि, बकरा, मेढ़ा। (आगे देखो काली, कालमुखी, एकपर्वा, द्विपर्वा, शब्द 'अजैर्यष्टध्यं' )॥
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