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(२०) छुट्टी के अतिरिक्त और भी कई बार एक एक, दो दो, तीन तीन मास की छुट्टियां ले | लेकर अपना अधिक समय गन्धलेखन कार्य ही में व्यय करते रहे हैं । ९. आपने गन्थावलोकन और लेखन कार्य नित्यप्रति अधिक समय तक भले प्रकार कर
सकने की योग्यता प्राप्त करने के लिये २० या २१ वर्ष की घय से ही रसनेन्द्रिय को वश में रख कर थोड़ा और सात्विक भोजन करने का अभ्यास किया और २४ वर्ष की वय से पूर्व अपना द्विरागमन संस्कार भी न कराया । और पश्चात् भी बहुत ही परिमित रूप से रहे जिसका शुभ फल यह हुआ कि सन् १८९७-६८ ई. में सरकारी ड्य टी, और वेतन की कमी के कारण चार पांच घंटे नित्य का प्राइवेट व्य शन, तथा गृहस्थधर्म सम्बन्धी आवश्यक कार्यों के साथ साथ मासिक पत्र के सम्पादन आदि का अधिक कार्य बढ़ जाने से केवल डेढ़ दो घंटे ही नित्य निद्रा लेने पर भी परमात्मा की कृपा से कोई कष्ट आदि आप को न हुआ और अब
तक भी ४-५ घण्टे से अधिक निद्रा लेने की मावश्यकता नहीं पड़ती। १०. अनेक ग्रन्थावलोकन और प्रन्थलेखन कार्य के लिये अधिक से अधिक समय दे सकने के विचार से आपने अपमा सरकारी वेतन केवल ४०) १० मासिक हो जाने परही संतोष करके प्राइवेट ट्यूशन का कार्य कम कर दिया, अर्थात् तीन चार घंटे के स्थान में अब केवल घंटे सवाघंटे ही का रख लिया और उसी समय ( सन् १९ १३ ई० में) यह भी प्रतिज्ञा करली कि "६०) २० मासिक वेतन होजाने पर प्राइवेट ट्रयशन करना सर्वथा त्याग दिया जायगा" । अतः सन् १९१६ ई० से जबकि आपका वेतन ६०).रू होगया आपने निज प्रतिज्ञानुसार अपनी २००) रु० वार्षिक से अधिक
की प्राइवेट ट्यूशन की रही सही आय का भी मोह त्याग दिया। ११. कोष के संग्रहीत शब्दों की व्याख्या आदि लिखमा प्रारंभ करने के समय वि० सं० १९७६-८० ( सन् १६२३-२४ ई० ) में आप सात्विक वृत्ति अधिक बढ़ाने के वि. चारसे सपा वर्षसे अधिक तक केवल सेर सवासेर गोदुग्ध पर या केवल कुछ फलों पर नमक और अन्न आदि सन म्याग कर लर्कारी कार्य करते हुए शेष समय में कोष लिखने का कार्य भी भले प्रकार करते रहे । अब भी आपका भोजन छटाँक डेढ़ उटाँक अन्न और आध सेर तीन पाव दुध से अधिक नहीं है।
शान्तीशचन्द्र जैन ( बुलन्दशहरी)
बाराषङ्की । ता० २०, अप्रैल १९२५
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