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________________ SaaEECRETATISTICua4BIKASHANTDARSHAD ( १२.१ ) अङ्गप्रविष्ट श्रु तज्ञान वृहत् जैन शब्दार्णव - अङ्गप्रविष्ट श्र तज्ञान अपेक्षा नारकी और देव समान है तथा| [५] व्याख्याप्रशप्ति( विपाकप्रशप्ति)--यह मन्य और तिर्यश्च समान हैं। अंग २२४००० मध्यम पदों में है। जीव __ इत्यादि................... अस्ति है या नास्ति, एक है या अनेक नित्य । (घ) भाव तुल्यता-वस्यशान और कैवल्य- है या अनित्य, बक्तव्य है या अवक्तव्य, दर्श समान हैं। इत्यादि ६० सहस्त्र प्रश्न उठाकर इनके उत्तर. इत्यादि.................... रूप सविस्तर व्याख्यान इस अज में है ॥ (ख) अन्यान्य तुल्यता-अरूपी गुणकी अपेक्षा [६] शातृधर्मकथाङ्ग-यह अङ्ग ५५६००० एक पुदगल द्रव्य को छोड़ कर शेष द्रव्य मध्यम पदों में है। इसमें जीवादि द्रव्योका जीव, धन, अधर्म, आकाश और काल स्वभाव, तीर्थङ्करों का माहात्म्य, तीर्थङ्करों समान है। की सहज स्वाभाविक दिव्यध्वनि का समय काय अपेक्षा एककाल द्रव्य को छोड़कर पूर्वान्ह, मध्यान्ह, अपरान्ह, और अर्द्धशेष ५द्रय सकाय होने से समान हैं। रात्रि की छहछह घटिकाएँ रत्नत्रय व दशजसत्व गुण की अपेक्षा एक जीव द्रव्य लक्षण रूप धर्म का स्वरूप, तथा गणधर, को छोड़कर शेष ५ द्रव्य समान हैं। इन्द्र, चक्रवर्ती आदि शानी पुरुषों सम्बन्धी __ स्थावर होने की अपेक्षा पृथ्वोकायिक, | धर्म कथाओं का निरूपण है। जल कादिक, अग्निकायिक, वायुकायिक [७] उपासकाध्ययनाङ्ग-यह अंग ओर बनस्पतिकाथिक, यह पांचों प्रकार के ११७०००० मध्यमपदों में है । इस में जोव समान हैं । उपासकों अर्थात् श्रावकों या धार्मिक सपने की अपेक्षा दो इन्द्रिय, त्रिइन्द्रिय, गृहस्थों की सम्यग्दर्शनादि ११ प्रतिमाओं चतुरेन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय, यह चारों प्रकार (११ प्रकार की प्रतिज्ञारूप श्रेणियों) के जीव समान है ॥ सम्बन्धी व्रत, गुण, शील, आचार, क्रिया, ___ असंशोपने की अपेक्षा सर्व प्रकार के | मन्त्र आदि का सविस्तार प्ररूपण है॥ स्थावर, (या एकेन्द्रिय जीव ) और दो- [८] अन्तःकृद्दशांग- यह अग इन्द्रिय, विइन्द्रिय, चतुरेन्द्रिय तथा २३२८००० मध्यमपदों में है। इसमें प्रत्येक अमनस्क-पञ्चेन्द्रिय जीव समान हैं। तीर्थकर के तीर्थकाल में जिन दश दश। गति की अपेक्षा सातोही नरकों के मुनीश्वरों ने चार प्रकार का घोर उपसर्ग नारकी समान हैं; चारों निकाय के देव सहन करके कैवल्यशान प्राप्त कर सिद्ध समान है; आर्य व म्लेच्छ या भूमिगोचरी पद (मुक्तिपद ) प्रात किया उन सर्व का। व विद्याधर या स्त्री व पुरुष या राजा सविस्तार वर्णन है ॥ व रंक इत्यादि सर्व प्रकार के मनुष्य नोट१-अन्तिम तीर्थङ्कर श्री महावीर समान हैं; और सर्व प्रकार के पशु पक्षी, | स्वामी के तीर्थकालमें (१) नमि (२)मता (३)। कीड़े मकोड़े और बनस्पति आदि पञ्च | सोमिन (४) रामपुत्र (५) सुदर्शन (६) यमस्थापर, यह सर्व तिर्यंच जीव समान हैं । लिक (७ ) वलिक ( = ) विकम्बित इत्यादि इत्यादि........................ (किकम्बल) (६) पालम्बष्ट (१०) पुत्र, इन दश स्या Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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