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________________ - 1 १११ ) अङ्कविद्या वृहत् जैन शब्दार्णव अङ्कविद्या ३६५ दिा, १५ घड़ी, ३१ पल, ३० विपल । ८४ लक्ष अटटांग का १ अटट । (३६५.२५८७५ दिन)का १ सूक्ष्म सौरवर्ष। ८४ लक्ष अटट का १ अममांग। ३६५ दिन, १५ घड़ी, २२ पल, ५४॥ विपल | ८४ लक्ष अममांग का १ अमम । ' . का १ सूक्ष्म सौरवर्ष (नबीन खोजसे)। ८४ लक्ष अमम का १ ऊहांग। ३६५ दिन, १४ घड़ी, ३२ पल, ४। विपल या ८४ लक्ष ऊहांग का १ ऊह । ३६५ दिन, १४ घड़ी, ३१ पल, ५६ विपळ ८४ लक्ष ऊह को १ लतांग। (३६५.२४२२४२ या ३६५.२४२२१८ दिन) ८४ लक्ष लांग की १ लता। का १ ऋत्विक् वर्ष (फ़सली वर्ष)। । ८४ लक्ष लता का १ महालताँग। १२ वर्ष का १ युग (साधारण)। ८४ लक्ष महालतांग की १ महालता (काल१०० वर्ष की १ शताब्दी। . ।। वस्तु)। ८४ सहस्र शताब्दी या ८४ लक्ष वर्ष का १ ८४ लक्ष महालता का १ शिरप्रकम्पित । ८४ लक्ष शिरःप्रकम्पित की १ हस्त प्रहेलिका। पूर्वाङ्ग। ८४ लक्ष पूर्वग का १ पूर्व ।। ८४ लक्ष हस्तप्रहेलिका का १ चर्चिक । ८४ लक्ष पूर्व का १ पर्वाग। अतः ( ८४ लक्ष वर्ष ) अर्थात् ८४ ८४ लक्ष पौंग का १ पर्व । लाख का २९वां बल (घात ) प्रमाण वर्षों ८४ लक्ष पर्व का १ नियुतांग। का एक चधिक काल होताहै। गणित फैलाने ८४ लक्ष नियुतांग का १ नियुत । से अर्थात ८४ लक्ष को २४ जगह रख कर ८४ लक्ष नियुत का १ कुमुदांग। . परस्पर गुणन करने से जो वर्षों की संख्या ८४ लक्ष कुमुदांग का १ कुमुद । प्राप्त होगी बह २०१ अङ्कः प्रमाण होगी। ८४ लक्ष कुमुद का १ पद्मांग। अर्थात् उस संख्या में ५६ अङ्क और १४५ ८४ लक्ष पद्मांग का १ पद्म ।। शून्य, २०१ स्थान होंगे॥ . ८४ लक्ष पद्म का १ नलिनांग ४१३४५२६, ३०३०-२०३१७७७४६५१२१६२.० 0000000000000000000 (२७ अङ्क (एक नलिनांग की वर्ष संख्या १४६ और २० शन्ध, सर्व ४७ अङ्क प्रमाण ) वर्ष ६१७०३२१६३४२३९७,०६१८४००००००० का १ व्ययहार पल्योपम काल । ०००००००००००००००००००००००००० * असंख्यातकोटि व्यवहार पत्योपमकाल ००,०००००००००००००००००००० (२२ का १ उद्धार पल्योपमकाल। अङ्क और ५५ शून्य सर्व ७७ स्थान * असंख्यात उद्धार पल्योपमकाल का या ७७ अङ्क प्रमाण ) है । १ अद्धापल्योषमकाल । ८४ लक्ष नलिनांग का १ नलिन । १० कोडाकोड़ी (१ पद्म ) व्यवहार पस्योपम ८४ लक्ष नलिन का १ कमलांग (अक्षनिकुराङ्ग)। काल का १ व्यवहारसगरोपमकाल । ८४ लक्ष कमलांग का १ कमल(अक्षनिकुर)। १० कोडाकोड़ी (१ पन ) उद्धारपल्योपम । ८४ लक्ष कमल का १ बृत्यांग । काल का १ उद्धारसागरोपमकाल । १४ लक्ष त्रुत्यांग का १ श्रुत्य । • देखो उपयुक्त नोट६ में (१) 'पल्य' २४ लक्ष त्रुत्य का १ अटरांग। की व्याख्या। For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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