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( १०५ ) अङ्कविद्या वृहत् जैन शब्दार्णव
अङ्कविद्या लिङ्गजन्य या अनक्षरात्मक विद्या का भेद इत्यादि अनेक नामों से प्रसिद्ध हैं और जिन भी कह सकते हैं)॥
| के राज्यसमय को आज से साउन्तालीस _ 'अनक्षरात्मक शब्दजन्य विद्या' वह सहस्रवर्ष कम एक कोडाकोड़ी सागरोपमविद्या है जिस से अनक्षरात्मक शब्दों द्वारा काल से कुछ अधिक व्यतीत हो गया। कुछ ज्ञान प्राप्त हो । जैसे पश, पक्षियों (देबो 'अक्षर' और 'अक्षरविद्या' शब्द ) ॥ के शब्द, मनुष्य की खांसी, छींक, ताली नोट ३-यह "अङ्कविद्या" लौशिक बजाना, थपथपाना, कराहना, रोना आदि और लोकोत्तर (अलौकिक ) भेदों से दो प्रके शब्द, अनेक प्रकार के बाजों के शब्द, कार की है। इन में से प्रत्येक के (१) अङ्करइत्यादि से कोई शकुन या अपशकुन विधा- गणित. (२) वीजगणित, (३) क्षेत्रगणित, (४) रने या उनका कोई विशेष प्रयोजन रेखागणित. (५) तृकोणमिति, इत्यादि अनेक या फल या अर्थ पहचानना ।
| भेद हैं और प्रत्येक भेद के कई कई अङ्ग __ लिङ्गजन्यबिद्या'वह विद्या है जिससे बिना हैं । इन भेदों में से प्रथम भेद 'अङ्कगणित' के किसी अक्षरात्मक या अनक्षरात्मक शब्द के | निम्नलिखित कई अङ्ग और उपाङ्ग हैं:केवल किसी न किसी चिन्ह द्वारा ही कोई (क) परिकर्माष्टक अर्थात् (१) संकलन ज्ञान प्राप्त हो सके । जैले हाथ, अँगुली, आँख, (जोड़), (२) व्ववकलन ( अन्तर ), (३) पलक आदि के खोलने, बन्द करने, फैलाने, गुणा, (४) भाग, (५) वर्ग, (६) वर्गमूल, (७) सुकोड़ने, हिलाने आदि से बनी हुई भाषा | घन, (८) घनमूल; (गंगी या मूकभाषा ), या कर्णइन्द्रिय के | (ज) ज्ञाताशातराशिक अर्थात् त्रैराअतिरिक्त अन्य किसी इन्द्रिय द्वारा विशेष शिक, पञ्चराशिक आदि; ज्ञान प्राप्त करने की विद्या । सर्व प्रकार की । (ग)व्यवहारगणित साधारण व मिश्र, हस्तकला और तैरना, व कुश्ती लड़ना आदि भी इसी प्रकार की विद्या में गिनी जा
(घ) ब्याज साधारण व मिश्र या चक्रसकता हैं ॥
वृद्धि, दो प्रकार का; नोट २-उपर्युक्त दोनों प्रकार की । (ङ) दर साधारण व मिश्र; श्रेढीवद्ध मुख्यविद्या वर्तमान अवसर्पिणी काल में सर्व व्यवहार; से प्रथम पहिले तीर्थकर 'श्रीऋषभदेव' ने अ
इत्यादि अनेक अङ्ग और उपाङ्ग पनी दो पुत्रियों को पढ़ाई थीं-बड़ी पुत्री हैं जिन सर्व का मूल ‘परिकर्माष्टक' अङ्ग है। 'ब्राह्मी' को 'व्याकरणविद्या' और छोटी पुत्री और जिससे यथा आवश्यक 'बीजगणित' 'सुन्दरी' को 'अङ्कविद्या'-और अन्य अनेक आदि अन्य अङ्गों में भी कार्य लिया जाता विद्याएं यथा आवश्यक अन्यान्य व्यक्तियों है। (देखो शब्द 'अङ्कगणित')॥ को सिखाई। अतः वर्तमानकाल में इन दोनों | लौकिक 'अङ्कगणित' के मुख्य सहायक मूलघिद्याओं के तथा और भी बहुत सी अन्य निम्न लिखित ६ प्रकार के मान (परिमाण) विद्याओं के जन्मदाता 'श्रीऋषभदेव' ही हैं | हैं:जो श्री आदिदेव, आदिनाथ, आदिब्रह्मा, (२) द्रव्यमान-पाई, पैसा, अधन्ना,
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