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________________ ( ६४ ) अङ्कगणना वृहत् जैन शब्दाणव अङ्कगणना इत्यादि को क्रम से ३२.३३,३४:३५. १०००००१००००० = १ के अङ्क पर इत्यादि। ५००000 शून्य अर्थात् ५0000१ पाँच उपयुक्त नियमानुकूल, लक्ष एक अङ्क प्रमाण, इत्यादि ॥ २२=२x२= ४ (एक अङ्क प्रमाण) उपयुक्त उदाहरणों में प्रत्येक अङ्क का 'बल' उसी अङ्क प्रमाण लिया गया है। ३३ = ३ ४ ३ ४ ३= २७ ( दो अङ्कप्रमाण) इन उदाहरणों पर साधारण ही दृष्टी डालने ४=४४४४४४४ = २५६ ( तीन अङ्क से यह भी प्रकट है कि प्रत्येक अङ्कः के उसी प्रमाण)। अङ्क प्रमाण 'बल' की संख्या आगे २ को ५५=५४५४५४५४५= ३१:५(चार | कितनी २ अधिक बढ़ती जाती है. यहां तक अङ्क प्रमाण)। कि केवल १०००00 (एक लाख ) ही का ६६=६४६४६४६४६४६=४६६५६ उसी प्रमाण 'बल' ५००००१ ( पाँच लाख (५ अङ्कप्रमाण)। एक ) अङ्क प्रमाण हो जाता है, अर्थात् १०१० = १०x१० x १०x१०४ १०x | उपर्युक्त उदाहरणों की अन्तिम संख्या इतनी अधिक बड़ी है कि उसे लिखने में १ के अङ्क १०x१०x१०x१०x१०=१००0000 ०००० (११ अङ्क प्रमाण)। पर पाँच लाख शून्य रखने होंगे जो बहुत २०२० = १०४८५७६००००००००००००० महीन महीन बनाने पर भी लग भग 'आई मोल लम्बी जगह में समावेंगे॥ . ००००००० (२७ अङ्क प्रमाण)। उपयुक्त रीति से 'बल' शब्द क १००१०० =१००००००००००००००००० अर्थ और उसका बल ( शक्ति ) भले प्रकार हृदयाङ्कित कर लेने पर अब जघन्ययुक्ता संख्यात की महान संख्या जो निम्नलिखित ०००००००००००००००००००००००००० प्रमाण है उसके महत्व की कुछ झलक हृदय पर पड़ सकती है:०००००००००००००००००००००००००० जघन्य परीतासंख्यात की संख्या | 0000000000000000000000000000 का जघन्य परीता संख्यातकी संख्या प्रमाण (१ के अङ्क पर २०० शून्य अर्थात् २०१ अथात् २०१ बल = जघन्ययुक्तासंख्यात, जिसका अर्थ यह | अङ्कप्रमाण)। है कि उपयुक्त 'जघन्यपरीतासंख्यात की | १०००१००० = १ के अङ्क पर ३००० महानसंख्या' का 'जघन्यपरीतासंख्यात की। शून्य अर्थात् ३००१ तीन हजार एक अङ्क संख्या' प्रमाण ही 'वल' लैने से (अर्थात् || प्रमाण । जघन्यपरीतासंख्यात की महान संख्या को १००००१०००० = १के अङ्क पर ४०००० | जघन्यपरीता संख्यात जगह अलग अलग| शून्य अर्थात् ४०००१ चालीस हज़ार | | रखकर फिर परस्पर सब को गुणन किया। एक अङ्क प्रमाण । । जावे ) जो महामहानसंख्या प्राप्त होगी वह। ०००००००००००००००००००००००००० ०००००००००००००००००००००००००० ०००००, ०००००००००००००००००००० ०००००००००००००००००००००००००० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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