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अङ्कगणना वृहत् जेन शब्दार्णव
अङ्कगणना दशलहन, लक्ष, दशलक्ष. कोटि, दश- ट्रिलियन, दशट्रिलियन, सौट्रिलियन, कोटि, शतकोटि, अर्बुद, न्यर्बुद, खर्व, | हज़ारट्रिलियन, दशहज़ार ट्रिलियन, महाखर्व, पद्म, महापद्म, क्षोणी, महाक्षोणी, | सौहज़ारट्रिलियन । २४ अङ्क प्रमाण है शंव, महाशंव, क्षित्य, महाशित्य, क्षोभ, जो आवश्यक्ता पड़ने पर क्वाड्रिलियन महाक्षोभ । २४ अङ्क प्रमाण ॥
आदि शब्दों द्वारा उपयुक्त रीति से छह (५) अंग्रेजी भाषा--इकाई, दहाई,
छह अङ्क प्रमाण २४ अङ्कों ( स्थानों ) से सैकड़ा, हजार, दशहज़ार, सौहजार,
कुछ आगे भी बड़ी सुगमता से बढ़ाई मिलियन, दशमिलियन, सौमिलियन,
जा सकती है ॥ हज़ारमिलियन, दशहजार मिलियन, सौहजार मिलियन; बिलियन, दशबि
(६) उत्संख्यक गणना-इस की लियन, सौबिलियन, हजारबिलियन, | इकाई दहाई १५० अङ्क प्रमाण ( डेढसौ दशहज़ार बिलियन, सौहजारबिलियन; स्थान ) से भी अधिक तकहै जो एक एक - श्री महावीराचार्य रचित ग्रन्थों में से एक "गणितसारसंग्रह" नामक गणित ग्रन्थ संस्कृत श्लोकवद्ध मूल अगरेजी अनुवाद सहित मद्रास सरकार की आज्ञा से मद्रास गवर्नमेंट प्रेस से सन् १९१२ में प्रकाशित हो चुका है। गणितविद्या का यह महत्वपूर्ण ग्रन्थ जो प्राचीन महान जैनगणित गून्य का बड़ा उत्तम और उपयोगी सार है १९३१ संस्कृत छन्दों में संकलित है जो दो अङ्गरेशी भूमिकाओं और अगरेजी अनुवाद सहित तथा विषयसूची, कठिन पारिभाषिक शब्दों के अर्थ, अङ्क संदृष्टिवाचक शब्दों की व्याख्या और बहुत से फटनोटो आदि सहित २०४२६ साइजा के अटपेजी ५५० बड़े पृष्ठों पर सजिल्द प्रकाशित हुआ है। साइपा और ग्रन्थ परिमाण आदि को देखते हुये इसका मूल्य केवल २) बहुत कम रखा गया है। इसके अनुवादकर्ता है मि० रङ्गाचार्य ऐम० ए० रावबहादुर, जो मद्रास प्रेसीडेंसी कालिज के संस्कृत व दार्शनिक प्रोफेसर व पूर्वी हस्तलिखित ग्रन्थों के सरकारी गन्थालय के मुख्य ग्रन्थाध्यक्ष है। दो भमिका लेखकों में से एक तो यही प्रोफैसर महाशय . हैं और दूसरे डाक्टर डैविड यूजीनस्मिथ ( Dr. David Eugine Smith ) हैं, जो उत्तरी अमरीकान्तर्गत न्ययार्क की 'कोलम्बिया निवर्सिटी' सम्बन्धी अध्यापकाय-महाविद्यालय में गणित के प्रोफेसर हैं । यह दोनों महानुभाव इन २४ पृष्ठों में लिखी हुई सविस्तार दोनों ही भमिकाओं में श्री ब्रह्मगुप्तसिद्धान्त' के रचयिता थी ब्रह्मगुप्त, सूर्यसिद्धान्त के टीकाकार व अन्य कई गणित ज्योतिष ग्रन्थों के रचयिता श्री आर्यभट्ट, और सिद्धांतश्रोमणि आदि कई गन्थों के रचयिता श्री भास्कराचार्य आदि के समय आदि का निर्णय और उनके गन्थों की तुलना श्रीमहावीराचार्य रचित "गणितसारसाठ से करते हो कई स्थानों पर श्री महावीराचार्य के कार्य की अधिक सराहना करते और उदाहरण देदेकर गणित सम्पर्धा इनके कई वरण | को अधिक सुगम, अधिक सही और पूर्ण बतलाते हैं ॥
यह महत्वपूर्ण ग्रन्थ निम्न लिखित एक अधिकार और आठ व्यवाहारों में | विभाजित है:
(१) संज्ञाधिकार [ Terminology ] इसमें मंगलाचरण, गणितशास्त्र प्रशंशा, संज्ञा, क्षेत्रपरिभाषा, कालपरिभाषा, धान्यपरिभाषा, इत्यादि १४ विभाग ७० इलोकों में हैं।
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