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________________ अङ्क वृहत् जैन शब्दार्णव अङ्कगणना सर, समीप, स्थान, अपराध, पर्वत, एक अङ्कगणना-.संख्यामान, गणिमान, अङ्कों युद्धभूषण, दुःख, पाप, देह, एक प्रकार की गिन्ती शन्यसे उत्कृष्ट अनन्तानन्त तक ॥ की स्वेतमणि, एक रत्न, संचितभूमि ॥ | अङ्कगणना लौकिक और लोकोत्तर (२) नवअनुदिश विमानों में से एक | भेदों से दो प्रकार की है। इन में से “लौविमान का नाम ॥ किक अङ्कगणना' तो यथा आवश्यक हम (३) प्रथम व द्वितीय स्वंग सौधर्म अनेक देशवासी संसारी मनुष्यों ने कुछ और ईशान के युग्म के ३१ इन्द्रकविमानों | अङ्को(स्थानों)तक अपनी आवश्यकताओं में से १७वे इन्द्रक विमान का नाम ॥ को ध्यान में रख कर अपनी अपनी बुद्धि (त्रि. ४६५)। वा विचारानुसार अनेक प्रकारसे नियत (४) 'कुंडलवर' नामक ११वे द्वीप की है। उदाहरण के लिये कुछ विद्वानों के मध्य के कुंडलगिरिपर्वत पर के २० फूटों की नियत संख्या निम्न प्रकार है:-- में से एक साधारण कूट का नाम अर्थात् (१) अरबी फ़ारसी-इकाई, दहाई, पश्चिम दिशा के४कटों में से प्रथम कर सैकड़ा, हजार, दशहजार, लाख, दशलाख, जिसका निवासी 'स्थिरहृदय' नामक एक केवल ७ अङ्क प्रमाण अर्थात् ७ स्थान तक पल्य की आयु पाला नागकुमारदेव है॥ (अरबी भाषा में अहाद, अशरात, मिआत, (५) 'रुचकवर' नामक १३वे द्वीप के अल्फ़, उलङ्ग, लक, लुकूक, और फारसी मध्य के 'रुचकगिरि' नामक पर्वत पर जो भाषा में यक, दह, सद, हपाार, दहहपार, दिक्कुमारी देवियों के रहने के चारों दि. लक, दहलक,)॥ शाओं में आठ २फट हैं. उनमें से उत्तर (२) लीलावती-एक, दश, शत, दिशा का एक कूट जिसमें 'मिश्रकेशी' सहस्र, अयुत, लक्ष, प्रयुत, कोटि, अर्बुद, नामक दिक्कुमारी देवी बसती है॥ अब्ज, खर्ब, निखर्ब, महापद्म, शंकु, जलधि, (६) सप्तनरकों में से प्रथम 'धर्मा' अंत्यज, मध्य, परार्ध, १८ अङ्क प्रमाण या 'रत्नप्रभा' नामक पृथ्वी के खरभाग | अर्थात् १८ स्थान तक॥ का अङ्करत्नमय सहस्र महायोजन मोटा - (३) उर्दू हिन्दी-इकाई, दहाई, ११वां कांडक या उपभाग । (देखो शब्द सैकड़ा, सहस्त्र, दशसहस्त्र,लक्ष, दशलक्ष, कोटि, दशकोटि, अर्ब, दशअर्ब, खर्व, 'अङ्का')॥ (त्रि. गा० १४६-१४८) दश खर्ब, नील, दशनील, पद्म, दशपम, __ नोट----स्वेताम्बराम्नाय के अनुकूल संख, दशशंख । १६ अङ्क प्रमाण ॥ 'अङ्क' खरकांड का १४वां भाग १०० योजन (४) श्री महावीर जैनाचार्यकृत चौड़ा है (अ० मा० कोष )॥ . 'गणितसारसंग्रह' -एक,दश, शत,सहस्र, * गणकचक्रवर्ती श्री महावीराचार्य अपने समय के गणितविद्या के एक सुप्रसिद्ध जैन विद्वान् थे । लीलावती और सिद्धान्त श्रीमणि आदि कई गणित व ज्योतिष ग्रन्थों के रचयिता गणकचक्रचूड़ामणि ज्योतिर्विद श्री भास्कराचार्य से, जिनका समय सन् १९१४-११८४ ई० है. यह श्री महावीराचार्य ३०० वर्ष पूर्व सन् ८१४--८७८ ई० में दक्षिण भारत में राष्ट्रकूटवंशी महाराजा 'अमोघवर्षनपतुंग' के शासनकाल में विद्यमान् थे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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