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जगायणी-पूर्व वृहत् जैन शब्दार्णव
अगायणी पूर्व या 'कषायपाहड़' का पूर्ण ज्ञान था । इन्होंने । लिखी॥ इस प्राभृत का सारांश १८३ मूल गाथाओं (५) चित्रकूट पुर निवासी सिद्धान्त में और ५३ विवरण रूप गाथाओं में रचकर | तत्वज्ञाता 'श्री पलाचार्य' के शिष्य श्री वीर
और १५महा अधिकारोंमें विभाजित करके श्री सेनाचार्य' ने पूर्व खंडों पर १८ अधिकारों में नागहस्ति' और 'आर्यमंक्ष' मुनियोको व्या- "सत्कर्म" नामक ग्रन्थ लिखा फिर छहाँ खंडों ख्या सहित सुनाया जिन्होंने उसे लिपिबद्ध पर ७२ हजार श्लोक परिमित संस्कृत प्राकृत भी करदिया। यह 'कषायप्राभृत'का सारांश- भाषा मिश्रित “धवल" नाम की टीका रची॥ रूप कथन 'दोष-प्राभृत' या 'कषायप्राभूत' (६) पश्चात् श्री नेमचन्द्रसिद्धान्तचक्रदोनो नामों से प्रसिद्ध है। इसी को द्वितीय- वर्ती ने उपयुक्त सिद्धान्त ग्रन्थों का साररूप श्र तस्कंध' या 'द्वितीयसिद्धान्तग्रन्थ' भी “गोम्मटसार" “लधिसार" "क्षपणासार" कहते हैं।
आदि ग्रन्थ रचे ॥ नोट ५-पश्चात् 'प्रथम श्र तस्कंध' "द्वितीय श्रु तस्कन्ध" पर निम्न लिखित को जो जो प्राकृत, संस्कृत, या कर्णाटकीय | टीका आदि लिखी गई:भाषाओं में टीकाएँ या वृत्तियां आदि रची (१) उपर्युक्त “श्रीनागहस्ति" और गई वे भी “प्रथमश्र तस्कंध' या प्रथम आर्यमंक्ष' मुनियों से "श्रीयतिवृषभ" सिद्धान्तग्रन्थ ही कहलाई । इसी प्रकार (यतिनायक ) मुनि ने “दोषप्राभृत" द्वितीय 'द्वितीय तस्कन्ध' की टीका आदि भी श्रु तस्कन्ध के सूत्रों का अध्ययन करके उसकी "द्वितीय श्रु त स्कन्ध'' या “द्वितीयसिद्धान्त- "चूर्णवृत्ति' ६००० (छह हजार ) श्लोक प्रन्थ' की कोटि ही में गिनी गई॥ | प्रमाण सूत्ररूप बनाई ॥
"प्रथम श्रु तस्कन्ध'' पर निम्म लिखित (२) "श्री उच्चारण" (श्री समुद्धरण) टीका आदि लिखी गई:
| आचार्य ने,१२००० श्लोक प्रमाण “उच्चारण(१) "श्री पद्ममुनि" ने पहिले ३ खंडों वृत्ति' नामक एक विस्तृत टीका रची जिसे की १२ हजार श्लोक प्रमाण टीका रची॥ | श्री कुन्दकुन्दाचार्य ने अपने गुरु "श्रीजिन
(२) "श्री तुम्बुलर' आचार्य (श्रीवर्य चन्द्राचार्य' से पढ़कर नाटक.त्रय (समयसार, देव) ने छठे खंड की ७ हजार श्लोक प्रमाण पंचास्तिकाय, प्रवचनसार ) और ८४ पाछुड़ कर्णाटकीय भाषा में "पंजिकाटीका” रची ॥ | आदि ग्रन्थ रचे । यह अपने गुरुश्रीजिनचन्द्रा
(३) तार्किकसूर्य "श्री स्वामी समन्त- चार्य के पश्चात वीर नि. सं. ६७२ से ७२४ भद्र आचार्य' ने पहिले पाँच खंडोंकी संस्कृत (शाका ४६ से १०१) तक उनके पट्टाधीश टीका ४८ हज़ार श्लोकों में रची ॥ रहे ॥
(४) श्री वप्पदेव गुरुने पहिले प्रथम के (३) "श्री श्यामकुंड'' आचार्य ने प्रथम ५ खंडों पर “व्याख्याप्रज्ञप्ति" नामक व्या- थ तस्कन्ध के केवल छटे खंड को छोड़कर ख्या लिखी, जिस में छठे खंड का संक्षेप दोनों श्र तस्कन्धों पर १२००० श्लोक प्रमाण कथन भी सम्मिलित कर दिया, पश्चात् छठे टीका रची॥ . खंड पर भी ८००५ श्लोक प्रमाण व्याख्या (४) उपर्युक्त "तुम्बुलूर'' नामक आ
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