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________________ ( ७२ ) अग्रसेन वृहत् जैन शब्दार्णव अप्रायणीपूर्व - इस अग्रसेन ने सुप्रसिद्ध अयोध्यापति | वाल इतिहास" नामक ग्रन्थ देखें ॥ महाराजा "मानधाता" की लगभग ५२वीं अगसोच- देखो शब्द"अग्रचिन्ता" ॥ पीढ़ी में वीर निर्वाण से ४६८१ वर्ष पूर्व | अग्रहण-(प्रा०अगहण)-(१) अग्राह्य, नग श्री नेमिनाथ तीर्थकर के तीर्थकाल में हण करने योग्य, अस्वीकृत, अस्वीकार । (द्वापरयुग के अन्तिम चरण में ) जन्म (२) वह पुद्गल वर्गणा जिसका औदारिलिया था। अपने पिता महीधर के लगभग २०० वर्ष की वय में राज्य त्याग कर कावि शरीररूप से गृहण न होसके कुलाम्नाय के अनुसार दिगम्बरी दीक्षा (अ. मा.)। धारण करने के पश्चात् ३५ वर्ष की वय में (३) मार्गशिर मास का नाम जो वीरनिर्वाण से ४६४६ वर्ष पूर्व राजकुमार अगवंश के मूल सूर्यबंशी महाराजा अग्रसेनको राजगद्दी मिली यह राजा ४२५ "अगसेन" के राज्याभिषेक का अगमास वर्ष राज्य सुख भोगकर ४६० वर्षकी वयमें अर्थात् प्रथम मास होने से तथा उन्हीं के वीर नि० से ४५२१ वर्ष पूर्व मिश्रदेश के नाम पर विक्रम सं० से ४.३० वर्ष पूर्व से जैनधर्मी राजा “कुरुषविन्दु” के साथ युद्ध "अगृहण" नाम से प्रसिद्ध हुआ। में बड़ी वीरता से लड़ कर मारा गया। अगहीत मिथ्यात्व-देखो शब्द "अगृ___ सारे अग्रवंशी या अग्रवाल जाति के हीत मिथ्यात्व" ॥ . लोग इसी राजा के १८ सुपुत्रों की सन्तान | अगहीतार्थ-देखो शब्द"अगृहीतार्थ" ॥ | हैं । इस राजा ने पिता से राजगद्दी पाने अगायणी पूर्व (आग्रायणीय पर्व )-- के पश्चात् “पातञ्जलि" नामक एक वेदा श्रु तज्ञान के १२ मूल भेदों या अङ्गों मेंसे नुयायी संन्यासी महानुभाव की संगति अन्तिम भेद के अर्थात् बारह अंग "दृष्टि से अपने कुलधर्म को त्याग कर वैदिक वाद' के चतुर्थ भेद “पूर्वगत' के जो धर्म को ग्रहण कर लिया था जो बहुत १४ भेद हैं उनमें से दूसरे भेद का नाम पीढ़ियों तक इस की सन्तान में पालन "आग्रायणीय पूर्व" है ॥ किया जाता रहा । पश्चात् अगरोहापति - इस पूर्व में ७०० सुनय व दुर्नय, पञ्चाराजा "दिवाकरदेव" के राज्य में वीर नि० स्तिकाय, षटद्रव्य, सप्ततत्व, नव पदार्थ सं० ५१५ के पश्चात् और ५६५ के पूर्व आदि का सविस्तर वर्णन है । इस पूर्व में | (विक्रम सं० २७ और ७७ के अन्तर्गत ) (१) पूर्वान्त (२) अपरान्त (३) ध्रुव (४) | सप्ताङ्गपाठी दिगम्बराचार्य श्री लोहाचार्य अध्रुव (५) अच्यवनलब्धि (६) अध्रुव जी' के उपदेश से जैनधर्म फिर इस वंश में संप्रणधि (७) कल्प (E) अर्थ (९) भौमाराजधर्म बन गया जिसे बहुत से अग्रवाल वय (१०) सर्वार्थ कल्पक (११) निर्वाण जातीय लोग आजतक पालन कर रहे हैं । (१२) अतीतानागत (१३) सिद्ध (१४)। नोट-महाराजा अग्रसेन और उस उपाध्याय,इन १४ वस्तुओं का सविस्तार की सन्तान का सविस्तार इतिहास जानने कथन है । इन १४ वस्तु में से पश्चम 'वस्तु' के लिये इस कोष के लेखक लिखित "अग्र- "अच्यवनलब्धि में २० पाहुड़ [प्राभत हैं, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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