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Karnation
अग्निजीव बृहत् जैन शब्दार्णव
अग्निदत्त सर्वयश (२५) सर्वयज्ञ (२६) सर्वगुप्त (२७)| हलवाई, रिश्तपज़ ( ईट पकाने वाला) सर्वप्रिय (२८) सर्वदेव. २९)सर्वविजय ३०) आहक-गर ( न्यूना बनाने वाला ).कुम्हार, विजयगुप्त ( ३१ ) विजयमित्र ( ३२ )विजयल लुहार, सुनार, रसोइया आदि की अजी(३३) अपराजित (३४) वसुमित्र (३५) विका॥ विश्वलेन (३६) साधुसेन ( ३७) सत्यदेव (२) भोगोपभोगपरिमाण नामक गुणवत ( ३८ ) देवसत्य ( ३१) सत्यगुप्त-(४०) स- के ५ मूल अतिचारोंके अतिरिक्त कुछ वि. त्यभित्र (४१) सताम्ज्येष्ठ (४२) निर्मल शेष अतिचारों में से एक "खरकर्म' नामक (४३) विनीत (४४) संवर (४५) मुनिगुप्त अतिवार सम्बन्धी १५ स्थूल भेदोंके अंतर (४६) मुनिदत्त (४७) मुनियश (४८) देव- गत यह "अग्निजीविका'' है। मुनि ( ४६ ) यशगुप्त (५०) सप्त-गुप्त (५१) नोट-"खरकर्म" के १५ स्थल भेद यह | सत्यमि (५२ ) मित्रयश (५३) स्वयम्भू हैं:-(१) धनजीविका (२) अग्निजीविका (५४ ) भगदेव (५५) भगदत्त (५६) भग- (३) अनोजीविका (४) स्फोटजीविका फल्गु (५७) गुप्तफल्गु (५८).मित्रफल्गु (५) भाटकजीषिका (६) यंत्रपीडिन (७) (५६) प्रजापति (६०) सत्संग (६१) व- निलांच्छन (८) असतीपोष (६) सर-शोष रुण (६२) धनपाल (६३) मघवान (६४) (१०) दवप्रद (११) विषवाणिज्य (१२) तेजोराशि (६५) महावीर (६६) महारथ लाक्षावाणिज्य (१३) दन्तवाणिज्य (१४) (६७) विशाल नेत्र (६८) महावाल (६९) केशवाणिज्य (१५) रसवाणिज्य । (प्रत्येक
सुविशाल (७०) वजू (७१) जयकुमार | का स्वरूप यथा स्थान देखें)। | (७२) वजूसार (७३) चन्द्रचूल (७४) म
अग्निज्वाल-(१) अग्नि ज्वाला, आगी हारस (७५) कच्छ (७६) महाकच्छ (७७)
लपट, आंवले का वृक्ष, जल पिप्पली, कुअनुच्छ (७८) नमि (७६) विनमि (८०) बळ (८१) अतिबल (८३) भद्रबल ( ८३)
सुम, धाये के फूल ।
| (२ ) ज्योतिष चक्र सम्बन्धी - ग्रहों में से नन्दी ( ८५ ) नन्दिमित्र ॥
एक ७५ वे ग्रह का नाम । (देखो शब्द ___ (देखो ग्रन्थ "वृ० वि० च०')
“अघ'' का नोट )॥
. भग्निजीव-अग्निकीट, अग्नि में रहने वाले (३) जम्बुद्वीपके 'भरत' और 'ऐरावत'क्षेत्रों जीप, अर्थात् वह बस जीव जो बहुत समय में से हर एक के मध्य में जो 'विजियार्द्ध' तक प्रज्वलित रहने वाली अग्नि में पैदा हो पर्वतहै उसकी उत्तर श्रेणीके ६० नगरों में जाते हैं जिन्हें ' अग्निकीट' और फ़ारसी| से एक नगर का नाम जो हर 'विजियार्द्ध' भाषा में 'समन्दिर' कहते हैं । तथा वह | . के पश्चिम भाग से ३६ वां और पूर्व भागसे जीव जो अग्निकाय में जन्म लेने के लिये २२ वाँ है । (देखो शब्द'विजियार्द्ध पर्वत')॥ जाता हुआ विग्रह गति में हो॥
अग्निदत्त-१. श्री भद्रवाह स्वामी (वतंभग्निजीविका-(१) आग के व्यापार मान पंचम काल के पंचम और अन्तिम से होने वाली आजीविका, जैसे भड़भेजा, श्र तकेवली जिन्होंने वीर निर्वाण सं०
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