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________________ अगारी वृहत् जैन शब्दार्णव अगारी (अचार), बड़ फल, पीपल फल, ऊमर, १७ नित्यनियम श्रावक के-षटरस कठूमर, पाकर फल, अजान फल, कन्द मूल, भोजन, कुमकुमादि विलेपन, पुष्पमाला, मट्टी, विष, मांस, मधु, मद्य, माखन, | ताम्बूल, गीतश्रवण, नृत्यावलोकन, मैथुन, अति तुच्छ फल, तुषार, चलित रस ॥ स्नान, आभूषण, वस्त्र वाहन, शयनासन, ___५३ क्रिया-उपर्युक्त १२ ब्रत (५अणुव्रत, सचित वस्तु, दिशा गमन, औषध, गृहारम्भ, ३गुणवत.४ शिक्षाबत), मूलगुण, ११ प्रतिमा और संग्राम, इन १७ का यथाआवश्यक (प्रतिज्ञा ), १२ तप ( अनशन, ऊनोदर, व्रत और यथाशक्ति नित्यप्रति परिमाण स्थिर परिसंख्यान,रसपरित्याग, विविक्तशय्यासन, करना ॥ कायक्लश, प्रायश्चित, विनय, वैयावत, ७ मौन-देवपूजा, सामयिक, भोजन, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग और ध्यान), ४ दान | वमन, स्नान, मैथुन, मलमूत्रत्याग, यह, ( ज्ञान दान, अभय दान, आहार दान अवसर मौन के हैं। औषधि दान), ३ रत्नत्रय ( सम्यग्दर्शन, | ४ प्रकार के ४४ अन्तराय भोजन सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र ), रात्रि भोजन | समय केत्याग, शद जल पान. और समता भाव ॥ (१) ८ राष्ट सम्बन्धी । जस, हाड़, मास. (आगे देखो शब्द " अग्रनिवति क्रिया" रक्त, गीला चाम, विष्टा, जीवहिसा पृ०७० और "क्रिया")॥ ___ इत्यादि दृष्टिगोचर होने पर ॥ ___२६ संस्कार-गर्भाधान, प्रीति क्रिया, | | (२) २० स्पर्श सम्बन्धी । जैसे बिल्ली, कुत्ता आदि पञ्चेन्द्रियपशु, चाम, ऋतुवती सुप्रीति क्रिया, धृति क्रिया, मोद क्रिया, | प्रियोद्भव क्रिया, नाम कर्म, बहिर्यान क्रिया, | स्त्री, नीच स्त्री पुरुष, रोम, नख, पक्ष (पंख) आदि के भोजन से छू जाने पर ॥ निषद्या क्रिया, अन्नप्राशन क्रिया, व्युष्टि क्रया अथवा वर्षवर्द्धन क्रिया, चौल क्रिया (३) १० श्रवण सन्बन्धी । जैसे देवमति अथवा केशवाय क्रिया, लिपिसंख्यान क्रिया, | भङ्ग होना, गुरु पर कष्ट या धर्म कार्य में उपनीति क्रिया. ब्रतचर्या. बतावतार क्रिया, विघ्न, हिंसक क्रूर वचन, रोने पीटने के वेवाह क्रिया, वर्णलाभ क्रिया, कुलचर्या शब्द,अग्निदाह या अन्यान्य उत्पात सूचक क्रेया, गृहीसिता क्रिया प्रशान्तता क्रिया, बचन सुनने पर। हत्याग क्रिया. दीक्षाद्य क्रिया. जिनरूपता (४) ६ मनोविकार या स्मरण सम्बंधी । ऋया, मौनाध्ययन व तत्व क्रिया, समाधि मांसादि ग्लानि दिलाने वाले पदार्थों के रण या मरण की क्रिया। स्मरणहोआनेपर याभूलसेकोई त्यागीहुई ५० दोष सम्यक्त को मलीन करने वाले वस्तु खाने पर स्मरण आते ही। इत्यादि। और सम्यक्ती के ६३ गुण ( देखो शब्द “अकः | ११ स्थान चन्दोवा लगाने के-(१) मात् भय" के नोट १२.३, पृ. १३,१४)॥ पूजन स्थान (२) सामायिक स्थान (३) स्वा२१ उत्तरगुण श्रावक के-लज्जावत, | ध्याय या धर्म चर्चा स्थान (४) चूल्हा (५) यावन्त, प्रसन्नचित्त, प्रतीतिवन्त, पर दोषा- | चक्की (६) पन्हेड़ा (७) उखली () भोजन छादक परोपकारी, सौम्यदृष्टि, गुणग्राही, स्थान (6) शय्या (१०) आटा छानने का पष्टवादी, दोघविचारी, दानी, शोलवन्त, | स्थान ( १) व्यापार-स्थान ॥ तज्ञ, तत्त्वज्ञ, धर्मज्ञ, मिथ्यात्व त्यागी,संतोषी, नोट३-उपर्युक्त ११ प्रतिमा व १४ लक्षण, पादवाद भाषी, अभक्ष्य त्यागी, षटकर्म | ५३ क्रिया आदि का अलग अलग स्वरूप वीण ॥ यथा स्थान देखें। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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