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अक्षीण महानस ऋद्धि
वृहत् जैन शब्दार्णव
अक्षोभ्य
उपभेद भी जाड़ लेने से इनकी संख्या और | __ 'विजयाद्ध पर्वत की उत्तर श्रेणी की ६० भी बढ़ जाती है । ( देखो शब्द 'ऋद्धि' )॥ नगरियों में से एक नगरी का नाम जो अक्षीण महानस ऋद्धि-(अक्षीणमहा
उस विजयाद्ध के पश्चिम भाग से ४८ वीं
और पूर्व भाग से १३ वीं है। देखो शब्द नसर्द्धि)-क्षेत्र ऋद्धि या अक्षीण ऋद्धि के
"विजयाद्ध पर्वत" ॥ दो भेदा में से एक भेद; महान तपोबल से "लाभान्तराय कर्म" के क्षयोपशम को
(३) स्वेताम्बराम्नायी अन्तगड़ सूत्र के आधिक्यता होने पर प्रकट हई तपस्वियों।
प्रथम वर्ग के ८ वें अध्याय का नाम का वह 'आत्मशक्ति" जिसके होते हुए
(अ. मा.)॥ यदि वह महा तपस्वी किसी गृहस्थ के (४) पुष्करार्द्धद्वीप का पश्चिम दिशा में घर भोजन करै तो उस गृहस्थ ने जिस विद्युन्माली मेरु के दक्षिण भरतक्षेत्रान्तर्गत पात्र से निकाल कर भाजन उन्हें दिया हो आर्यखंड की वर्तमान काल में हुई चौबीसी उस पात्र (वर्तन या बासन या भाजन) के १६ वें तीर्थंकर का नाम । यह श्री में इतना अटूट भोज्य पदार्थ हो जाय कि अक्षोभ अक्षधर के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। उस दिन उस पात्र में चाहे चक्रवर्ती राजा कषिवर वृन्दावन जी ने अपने ३० चौपीसी के समस्त दल को जिमा दिया जावे तो भी | पाठ में इन्हें १८ वें तीर्थकर १६३ की वह पात्र रीता न हो।
जगह लिखा है । ( आगे देखो शब्द अक्षीण महानसिक--अक्षीण महानस |
"अढ़ाईद्वीप पाठ" के नोट ४ का ऋद्धि प्राप्त मुनि ॥
कोष्ठ ३)॥ प्रक्षीणमहानसी-अक्षीणमहानस लब्धि॥ अक्षोभ्य-(१) अचंचल, स्थिर, गम्भीर ।।
(२) नवमनारायण श्रीकृष्ण चन्द्र के ज्येष्ठ अक्षोण महालयऋद्धि- (अक्षीण महा
पितृव्य और २२ वें तीर्थङ्कर श्री नेमनाथ लयद्धि)-क्षेत्र ऋद्धि के दो भेदों में से
(अरिष्ट नेमि) के लघ पितृव्य (चचा)एक का नाम; उग्र तप के प्रभाव से
यह यादव वंशी शौर्यपुर नेरश 'अन्धकप्रकट हुई तपस्वियों की वह आत्म शक्ति
वृष्णि' की महारानी 'सुभद्रा' से उत्पन्न जिसके होने से इस ऋद्धि का धारक दश भाई थे-(१) समुद्र विजय (२) ऋषि जिस स्थान में स्थित हो वहाँ चाहे
अक्षोभ (३) स्तिमित सागर (४) जितने प्राणी आजावें उन सर्व ही को
हिमवान (५) विजय (६) अचल ] बिना किसी रुकावट के स्थान मिल जाय॥
(७) धारण (८) पूरण (8) अभिप्रक्षेमधसकि -दूध घी आदि गोरस | चन्द्र (१०) वसुदेव । इनमें से सब से का त्यागी साधु (अ. मा.) ।
बड़े भ्राता “समुद्र विजय" के पुत्र
श्री नेमनाथ आदि और सब से छोटे प्रक्षोभ-(१) क्षोभ रहित, चंचलता रहित,
वसुदेव के पुत्र श्री बलदेव और श्रीकृष्ण अक्रोधित, न घबड़ाया हुआ, क्षोभ का चन्द्र आदि थे । इन दशों भाइयों की : अभाव, शान्ति, दृढ़ता, हाथी बांधने का 'कुन्ती' और 'मद्री' यह दो बहनें थीं जो खूटा।
हस्तिनापुर नरेश पाण्डु" को व्याही गई ( २ ) जम्बूद्वीप के 'भरत' और | थीं जिन से युधिष्ठरादि ५ पाण्डव उत्पन्न 'ऐरावत' क्षेत्रों में से हर एक के | हुए। इस 'अक्षोभ्य' के उसकी "धृति"
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