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________________ MARRoamaasumaaranaar SAREERARMANENw OTHARUPTAy अक्षरसमासज्ञान वृहत् जैन शब्दार्णव अक्षरज्ञान RAUTDana नोट १-पद के ३ भेद हैं-(१) अर्थ- | का है जो पर्यायसमासज्ञान से कुछ अधिक पद (२) प्रमाणपद (३) मध्यमपद ॥ नोट २-किसी अर्थ विशेष के बोधक | नोट ३-श्रतज्ञान के भेद यह हैं - किसी छोटे बड़े अनियत अक्षरों के समूह | (१) पर्याय ज्ञान (२) पर्यायसमास शान (1) रूप वाक्य को अर्थपद कहते हैं; किसी छन्द | अक्षरज्ञान (४) अक्षरसमास ज्ञान (५) पदज्ञान के एक चरण या पाद को जिसमें छन्दशास्त्र | (६) पदसमास ज्ञान (७) संघात ज्ञान (८) के नियमानुकूल अक्षरों की गणना छन्द भेद | संघातसमास ज्ञान (8) प्रतिपत्तिक ज्ञान (१०) अपेक्षा न्यूनाधिक होती है प्रमाणपद कहते | प्रतिपत्तिकसमास ज्ञान (१ अनुयोगज्ञान है; और १६३४८३०५८८: नियत अक्षरों के | () अनुयोगसमास ज्ञान (९३) प्राभृतप्राभृतसमूह को मध्यमपद कहते हैं ॥ ( गो० जी. कशान (१४)प्राभृतप्राभृतकसमास शान (१५) गा। ३३५)॥ प्राभृत ज्ञान (१६) प्राभृतसमास ज्ञान (२७) नोट ३---आगे देखो शब्द 'अक्षरसमास- | वस्तुशान (१८) वस्तुसमास शाम (१६) पूर्वज्ञान" का नोट ॥ ज्ञान (२०) पूर्वसमास ज्ञान ॥ . अक्षरसभासज्ञान-'श्रुतज्ञान' के . इनमें से प्रथम दो भेद अनक्षरात्मक श्रुतज्ञान के हैं और शेष १८ भेद अक्षरात्मक के हैं। भेदों में से एक चौथे भेद का नाम; यह | (गो० जी० गा० ३१७, ३२७, ३४८ ) ज्ञान जो कम से कम दो अक्षरों का और नोट ४ - श्रुतज्ञान के उपर्युक्त २० भेद अधिक से अधिक एक "मध्यमपद' से | 'भावश्रुत' अपेक्षा हैं; द्रव्यश्रुत अपेक्षा अङ्गएक अक्षर कम का हो । एक "मध्यमपद" प्रविष्ट और अङ्गवाह्य, यह दो मूल भेद हैं ॥ के अक्षरों की संख्या से दो कम इस ज्ञान अक्षरज्ञान-श्रुतशान के २० भेदों में से के स्थान या भेद हैं ॥ (गो. जी. गा. एक तीसरे भेद का नाम; वह ज्ञान जो ___ नोट १-एक मध्यम पद के अक्षरों की केवल एक मूलाक्षर या संयोगी अक्षर संख्या१६३४८१.७१८है अतः 'अक्षरसमास सम्बन्धी हो। इसी को 'अर्थाक्षर ज्ञान' ज्ञान' के १६३४८३०७८८६ स्थान या भेद है। भी कहते हैं। यह श्रुतज्ञान के २० भेदो अर्थात् २ अक्षरज्ञान, ' अक्षरज्ञान, " अक्षर- में से जो दूसरा भेद "पर्याय समास ज्ञान" शान, इत्यादि के एक एक अक्षर बढ़ाकर है उसके उत्कृष्ट भेद से अनन्त गुणा है ॥ ३४.३०७... अक्षरशान पर्यन्त में से प्रत्येक को "अक्षरसमासज्ञान" कहते हैं। इस __ (देखो 'अक्षर समास ज्ञान' का नोट ३) का प्रथम स्थान या जघन्यभेद "दो अक्षर नोट?--अक्षर के निम्न लिखित ३ भेद शान' है। इससे कम एक अक्षर के ज्ञान को | हैं:--- "अक्षरशान" कहते हैं और अन्तिम स्थान | (१) लब्धि-अक्षर ( लब्ध्यक्षर )या उत्कृष्ट भेद, १६३४.३०७८५७ अक्षरों का शान है। इससे एक अक्षर अधिक के शानको अक्षरज्ञान की उत्पत्ति का कारण भावन्द्रिय "पदशान" कहते हैं। रूप “आत्मशक्ति' का उस अक्षय लब्धि ... नोट २–यहांअक्षर से अभिप्राय द्रव्या- (प्राप्ति ) को लब्ध्यक्षर कहते हैं जा पर्यायक्षर का नहीं है किन्तु भावाक्षररूप-श्रुतशान शानावरण से लेकर श्रुत-केवल-शानावर्ण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016108
Book TitleHindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB L Jain
PublisherB L Jain
Publication Year1925
Total Pages352
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size9 MB
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