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१७२५. पूजा - बारहव्रत पूजा, मणिप्रभसागर उ० / जिनकान्तिसागरसूरि, पूजा, हिन्दी, २०४७
नाकोड़ा, आदि-नाकोड़ा पारस नमो..., अन्त-गायो गायो रे बारह व्रत महिमा गायो...', मु.,
पूजन सुधा, पारस प्रकाशन, नई दिल्ली १७२६. पूजा - ब्रह्मचर्य व्रत पूजा, मणिप्रभसागर उ० / जिनकांतिसागरसूरि, पूजा, हिन्दी, २०४७
मोकलसर, 'आदि-पार्श्वनाथ नरनाथ को..., अन्त-गायो गायो रे गायो गायो रे व्रत ब्रह्मचर्य
गुण गायो...', मु., पूजन सुधा, पारस प्रकाशन, नई दिल्ली १७२७. पूजा - मणिधारी जिनचन्द्रसूरि पूजा, जिनहरिसागरसूरि / भगवानसागर, पूजा, हिन्दी,
१९९८ मोकलसर, 'आदि-ॐ अर्ह जिनचन्द्रवर..., अन्त–श्रीमणिधारी महाराज...', मु.,
जिनहरिसागरसूरि ज्ञान भं., लोहावट १७२८. पूजा - महावीरषट्कल्याणक पूजा, विनयसागर उ० / जिनमणिसागरसूरि, पूजा, हिन्दी,
२०१२ महासमुंद, 'आदि-सिद्ध बुद्ध शिवकर विभो..., अन्त-महावीर जिनवर की पूजा है
सुखकारी...', मु. सुमति सदन, कोटा १७२९. पूजा - महावीरस्वामी पूजा, जिनकवीन्द्रसागरसूरि / जिनहरिसागरसूरि, पूजा, हिन्दी,
२०१२ बीकानेर, 'आदि-ऊँ अर्ह ज्योर्तिमइ..., अन्त-प्रभुजी आप शरण हम आए...', मु.,
जैन पूजा संग्रह, कलकत्ता १७३०. पूजा - मोहनीय कर्म निवारण पूजा, जिनकवीन्द्रसागरसूरि / जिनहरिसागरसूरि, पूजा,
हिन्दी, २१वीं, 'आदि-मोह महावलवान है..., अन्त–यो मोह करम बलवान...', मु., बृहत्
पूजा संग्रह, कलकत्ता १७३१. पूजा - युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि पूजा, जिनहरिसागरसूरि / भगवानसागर, पूजा, हिन्दी,
१९९८ मोकलसर, 'आदि-ॐ अर्ह गुरुदेव है..., अन्त-पूजो जग जयकारी गुरु है...' मु.,
जिनहरिसागरसूरि ज्ञान भं., लोहावट १७३२. पूजा - रत्नत्रय आराधना पूजा, जिनकवीन्द्रसागरसूरि / जिनहरिसागरसूरि, पूजा, हिन्दी,
२०१२ बीकानेर, 'आदि-सुख सागर भगवान जिन..., अन्त–तीन रतन ले धार तुं मनवा...,
मु., बृहत् पूजा संग्रह, कलकत्ता १७३३. पूजा - वास्तुक पूजा, मणिप्रभसागर उ० / जिनकान्तिसागरसूरि, पूजा, हिन्दी, २०४६
जयपुर, 'आदि-स्वस्ति श्री अर्ह नतो..., अन्त-ॐ जय शांति नाथा स्वामी...', मु., पूजन
सुधा पारस प्रकाशन, नई दिल्ली १७३४. पूजा - वीस विहरमान पूजा, म० ऋद्धिसार (रामलाल) / कुशलनिधान उ०, पूजा,
हिन्दी, १९४४ भागनगर (हैदराबाद), 'आदि-प्रणमी श्री जिन शान्तिकर..., अन्त-जगपति
विहरमान जिनराजै...', मु., जिन पूजा महोदधि १७३५. पूजा - वीस स्थानक पूजा, जिनहर्षसूरि / जिनचन्द्रसूरि, पूजा, राजस्थानी, १८७१ बालूचर,
'आदि-सुखसम्पति दायक सदा..., अन्त-ए वीसस्थानक भुवनवंदन...', मु., जिन पूजा महोदधि
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खरतरगच्छ साहित्य कोश
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