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५२५. गजसिंह नरिंद चौपई, नन्दलाल पाठक, रास चौपई, राजस्थानी, १८वीं, अ., ह. खजांची
संग्रह रा.प्रा.वि.प्र., बीकानेर ५२६. गजसुकुमाल चौपई, जिनहर्षगणि / शान्तिहर्षगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १७१४, अ., ह.
जिनभद्रसूरि ज्ञान भं., जैसलमेर ५२७. गजसुकुमाल चौपई, पूर्णप्रभगणि / शान्तिकुशलगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १७८६,
'आदि-जिणवरनै प्रणमी करी..., अन्त–कल्पसूत्र मांहिथी जाणी...', अ., ह. अनन्तनाथ ज्ञान
भं., बम्बई ५२८. गजसुकुमाल चौपई, भुवनकीर्ति उ० / ज्ञाननंदी उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १७०३
खम्भात, 'आदि-त्रिभुवनपति पुण्यतमा..., अन्त-श्री वीरजिनवर पाटपाटे गच्छ खरतरसें धणी...', अ., उ. जैन गुर्जर कविओ भाग-१, पृ. ५६३, ह. आचार्यशाखा ज्ञान भं., बीकानेर,
कैलाशसागरसूरि ज्ञान मन्दिर, कोबा ४५९५, सदागम ट्रस्ट, कोडाय ५२९. गजसुकुमाल चौपई, लावण्यकीर्त्तिगणि / ज्ञानविलास उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १७वीं,
'अन्त-बंदीवान छुडावीयारे...', अ., ह. केशरियानाथ ज्ञान भं., जोधपुर । ५३०. गजसुकुमाल चौपई, जिनराजसूरि / जिनसिंहसूरि, रास चौपई, राजस्थानी, १६९९, आदि
नेमीसर जिनवर तणा..., अन्त-संवत सोलह निन्नांणू वरसइ... गा. ८००', मु., जिनराजसूरि
कृति कु. १६२ ५३१. गणधरवाद बालावबोध, क्षमामाणिक्य / जिनजय, प्रकरण, राजस्थानी, १८३८, अ.,
वर्द्धमान - बड़ा ज्ञान भं., बीकानेर ५३२. गणधरसप्तति (सुगुरु गुण संथव सत्तरिया), जिनदत्तसूरि / जिनवल्लभसूरि, स्तोत्र, प्राकृत,
१२वीं, आदि-गुणमणिरोहणगिरिणो..., अन्त–इय सुहगुरु गुण संथव सत्तरिया...', मु., युगप्रधान
जिनदत्तसूरि, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर ५३३. गणधरसार्द्धशतक, जिनदत्तसूरि / जिनवल्लभसूरि, स्तोत्र, प्राकृत, १२वीं, 'आदि
गुणमणिरोहणगिरिणो..., अन्त–जिणदत्तगणि गुणसयं...', मु., जिनकृपाचन्द्रसूरि ज्ञान भं., इन्दौर ५३४. गणधरसार्द्धशतक लघुवृत्ति, पद्ममन्दिरगणि / विजयराज उ०, स्तोत्र, संस्कृत, १६४६
जैसलमेर, 'आदि-श्रीजिनदत्तसूरिभूरिभव्य-नव्य-नव्यतर..., अन्त–श्रीमज्जिनेश्वरगुरो...', अ.,
ह. खरतरगच्छ ज्ञान भं., जयपुर, हरिसागरसूरि ज्ञान भं., पालीताणा ५३५. गणधरसार्द्धशतक लघुवृत्ति, सर्वराजगणि / जिनेश्वरसूरि द्वि., सतोत्र, संस्कृत, १३वीं,
'आदि-कलयाणं वः प्रतन्यात्प्रथमजिनपतिः..., अन्त-श्रीमंत प्रभुपुंडरीक गणिमृन्मुख्या...', अ., ह. तपागच्छ ज्ञान भं., जैसलमेर, राजवैद्य उदयचन्द संग्रह, जोधपुर, कांतिविजय संग्रह,
छाणी, विनय. प्रतिलिपि ५३६. गणधरसार्द्धशतक बृहद्वृत्ति, सुमतिगणि / जिनपतिसूरि, स्तोत्र, संस्कृत, १२९५, अ., ह.
जिनभद्रसूरि ज्ञान भं., जैसलमेर, बड़ा ज्ञान भं., बीकानेर, हरिसागरसूरि ज्ञान भं., पालीताणा
खरतरगच्छ साहित्य कोश
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