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________________ ५०१. खरतरगच्छ पट्टावली पिप्पलक चौपाई, राजसुन्दर / जिनचन्द्रसूरि पिप्पलक, गुर्वावली, राजस्थानी, १६६९, ‘आदि- समरूं सरसति गौतम पाय... अन्त-प्रह उठी नर नारी जेह... श्लो. - १९', मु., ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, पृ. ३१९ ५०२. खरतरगच्छ परंपरा दोहा, समयसुन्दरोपाध्याय / सकलचन्द्रगणि, गुर्वावली, राजस्थानी, १७वीं, 'आदि-शासनपति वर्द्धमान... गा. २१', मु., दादागुरु भजनावली, पृ. ७ ५०३. खरतरगच्छालङ्कारयुगप्रधानाचार्यगुर्वावली, जिनपालोपाध्याय / जिनपतिसूरि, ऐतिहासिक गुर्वावली, संस्कृत, १३०५ दिल्ली, 'आदि- वर्धमानं जिनं नत्वा..., अन्तलोकभाषानुसारिण्यः...', ह. क्षमाकल्याण संग्रह, बीकानेर, मु., खरतरगच्छ बृहद्गुर्वावलि, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर, सम्पादक- म. विनयसागर ५०४. खरतरगच्छ गुणवर्णन छप्पय, अभयतिलकोपाध्याय / जिनपतिसूरि, गुर्वावली, अपभ्रंश, १४वीं - १५वीं, 'आदि-सो गुरु सगुरु जु छविह जीव..., अन्त - दसणभद्द चिंतेय अहह मइ सुकिय न किद्धउ...', मु., ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, पृ. २४, ह. अभय ग्र., बीकानेर ५०५. खरतरगच्छ गुरुनाम संस्तवन, हीरकलशोपाध्याय / हर्षप्रभ उ०, , गुर्वावली, प्राकृत, १६२०, ' आदि - नमिय सिरि वीरनाहं..., अन्त - गयणं नह णयण रयण सिद्धि रसे...', अ., ह. रा.प्रा.वि.प्र., जयपुर गुटका, विनय प्रतिलिपि ५०६. खरतरगच्छ गुरुपरम्परा, हीरकलशोपाध्याय / हर्षप्रभ उ०, गुर्वावली, राजस्थानी, १७वीं, ' आदि - पय पणमिय जिणवर गणहर गोयम पाय... अन्त- जां मेरु महीधर जां लगि दूरविचंद...', अ., ह. रा. प्रा. वि.प्र., जयपुर गुटका, विनय प्रतिलिपि ५०७. खरतरगच्छ पट्टावली, समयसुन्दरोपाध्याय / सकलचन्द्रगणि, गुर्वावली, राजस्थानी, १७वीं, 'आदि-सो गुरु सुगुरु जु छविह...., अन्त-न विट लंपट मुक्त निकट ... गा. ३७', मु., ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, पृ. २४ ५०८. खरतरगच्छ युगप्रधान चतुष्पदिका, ठक्कुर फेरु धंध गोत्रीय / ठक्कुर चन्द्र, गुर्वावली, १४वीं, 'आदि-सयल सुरासुर वंदिय पाय... अन्त-सुरगिरि पंच दीव सव्वेवि...', मु., रा.प्रा.वि.प्र., , जोधपुर ५०९. खरतरगुरु गुणवर्णन छप्पय, ?, स्तुति, अपभ्रंश, १५वीं, 'आदि- प्रणमी वीर जिनेश्वर ... गा. ८', अ., ह. अभय ग्र., बीकानेर ५१०. खरतरशब्दव्युत्पत्ति, श्रीवल्लभोपाध्याय / ज्ञानविमलोपाध्याय, अनेकार्थी, संस्कृत, १७वीं, अ., ह. विनय प्रतिलिपि ५११. खापरा चोर चौपई, अभयसोमगणि / सोमसुन्दर उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १७२३ सिरोही, अ., ह. विनय प्रतिलिपि ५१२. खेटसिद्धि, महिमोदयगणि / मतिहंस, ज्योतिष, राजस्थानी, १८वीं, अ., ह. रा.प्रा.वि.प्र., जोधपुर Jain Education International खरतरगच्छ साहित्य कोश For Personal & Private Use Only 41 www.jainelibrary.org
SR No.016106
Book TitleKhartargaccha Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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