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४८९. खचराननपश्य सखे खचर काव्यअर्थत्रयी, श्रीवल्लभोपाध्याय / ज्ञानविमल उ०, काव्य,
संस्कृत, १७वीं, अन्त–येषां वाचः.....शिशिररुचिकलेवातिशुद्धा...', अ., ह. विनय. प्रतिलिपि,
लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्या मन्दिर, अहमदाबाद ४९०. खण्डप्रशस्ति टीका, गुणविनयोपाध्याय / जयसोम उ०, काव्य, संस्कृत, १६४१ फलवर्द्धि,
'आदि-श्रीपार्श्व फलवर्द्धिकाद...., अन्त-विधुवारिधिरसशशिधर...', मु., रा.प्रा.वि.प्र., जोधपुर,
संपादक - म० विनयसागर, ह. हरिसागरसूरि ज्ञान भं., पालीताणा, लेखन-१६४५ ४९१. खण्डहरों का वैभव, कान्तिसागर / सुखसागर उ०-जिनकृपाचन्द्रीय, इतिहास, हिन्दी,
___ २१वीं, मु., भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली ४९२. खन्धकमुनि चौढालिया, उदयरत्न / विद्याहेम, रास चौपई, राजस्थानी, १८८३ देशणोक,
अ., ह. महिमाभक्ति - बड़ा ज्ञान भं., बीकानेर ४९३. खरतरगच्छगुर्वावली, गुणविनयोपाध्याय / जयसोम उ०, गुर्वावली, राजस्थानी, १७वीं,
'आदि-प्रणमु पहिली श्री वर्धमान..., अन्त-जेसलमेरु विभूषण पास जी...', मु., ऐतिहासिक
जैन काव्य संग्रह, पृ. २२८ ४९४. खरतरगच्छ गुर्वावली बेगड़, गुर्वावली, राजस्थानी, १६वीं, 'आदि–पणमिय वीर जिनन्दचन्द,
अन्त-संपइ नवनिध विहित हेतु...', मु. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, पृ. ३१२ ४९५. खरतरगच्छ गुर्वावली, हीरकलशोपाध्याय / हर्षप्रभ उ०, गुर्वावली, राजस्थानी, १६१७,
'आदि-रिसह जिणेसर आदि दे..., अन्त-पंदउ श्री चउवीस जिण...', अ., ह. रा.प्रा.वि.प्र.,
जयपुर गुटका, विनय. प्रतिलिपि ४९६. खरतरगच्छ पट्टावली, क्षमाकल्याणोपाध्याय / अमृतधर्म उ० , गुर्वावली, संस्कृत, १८३०
जीर्णगढ़, 'आदि-प्रणिपत्य जगन्नाथं..., अन्त-गांभीर्यादिगुणग्रामवेश्मनां...', मु., खरतरगच्छ
पट्टावली संग्रह, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर ४९७. खरतरगच्छ पट्टावली, राजलाभगणि / राजहर्ष वा., गुर्वावली, संस्कृत, १७२१ सितपत्र,
'आदि-श्रीवीर मोक्षगते सं. १३७५ वर्षे...', अ., ह. विनय. प्रतिलिपि, भाण्डारकर ओरियन्टल
रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पूना ४९८. खरतरगच्छ पट्टावली, लब्धिमुनि उ० / राजमुनि, गुर्वावली, संस्कृत, १९७० , अ., ह.
अभय ग्र., बीकानेर, खरतरगच्छ ज्ञान भं., माण्डवी ४९९. खरतरगच्छ पट्टावली, समयसुन्दरोपाध्याय / सकलचन्द्रगणि, ऐतिहासिक गुर्वावली, संस्कृत,
१६९० खम्भात, 'आदि-गौतमादि गुरूननत्त्वा..., अन्त–इमम् गुर्वावली ग्रन्थं...', अ., ह. __ विनय. प्रतिलिपि, अभय ग्र., बीकानेर, कैलाशसागरसूरि ज्ञान मन्दिर, कोबा १३१८२ ५००. खरतरगच्छ पट्टावली, सोमकुञ्जर उ० / जयसागरोपाध्याय, गुर्वावली, अपभ्रंश, १६वीं,
'आदि-घण घण जिनशासन..., अन्त-युगवर तणा गुरुरयण पूरी... गा. ३०', मु., ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, पृ. ४३
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खरतरगच्छ साहित्य कोश
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