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निरुक्त कोशः
२७८. उक्कोस (उत्कर्ष)
उक्कस्यतेऽनेनेति उक्कोसो।
(सूचू १ पृ ४६) जिसके द्वारा उत्कर्ष किया जाता है, वह उत्कर्ष/मान है। २७६. उक्कोसण (उत्कर्षण) ऊर्द्ध कसणं उक्कोसणं।
(आचू पृ ३५७) जो ऊपर की ओर खींचता है, वह उत्कर्षण है।
२८०. उक्कंचण (उत्कञ्चन) ऊद्ध्वं कञ्चनं मूल्याधारोपणार्थ उत्कञ्चनम् । (ज्ञाटी प ८६)
अल्पमूल्य में उत्कञ्चन/स्वर्ण का सा अधिक मूल्य आरोपित करना उत्कंचन/माया है। २८१. उक्खित्तचरअ (उत्क्षिप्तचरक)
उत्क्षिप्तं—स्वप्रयोजनाय पाकभाजनादुद्धतं तदर्थमभिग्रहविशेषाच्चरति-तद्गवेषणाय गच्छतीत्युत्क्षिप्तचरकः। (स्थाटी प २८७)
जो उत्क्षिप्त (भोजनपात्र से निकाली हुई) भिक्षा ग्रहण करता है, वह उत्क्षिप्तचरक है। २८२. उग्गह (अवग्रह) अव इति प्रथमतो ग्रहणं परिच्छेदनमवग्रहः। (स्थाटी प २७३)
जो अव/प्रारम्भिक ग्रहण/बोध है, वह अवग्रह है। २८३. उग्गहण (अवग्रहण) सूत्रमर्थ वा झगित्येवावगृह्णातीति अवग्रहणः। (बृटी पृ २२८)
जो सूत्र और अर्थ को शीघ्र ग्रहण करता है, वह अवग्रहण/ मेधावी है।
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