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निरुक्त कोश
२७२. इसि (ऋषि)
ऋषति धर्म्ममिति ऋषिः । '
जो धर्म को जानता है, वह ऋषि है । जो धर्म में गति करता है, वह ऋषि है ।
२७३. इहत्थ ( इहस्थ )
इहैव विवक्षिते ग्रामादौ तिष्ठतीति इहस्थः । at se / विवक्षित ग्राम आदि में रहता है, २७४. इहत्थ ( इहास्थ )
हा ।
ऊहापोह करना ईहा है ।
sta जन्मनि भोगसुखादि आस्था - इदमेव साध्विति बुद्धिर्यस्य स इहास्थ: । ( स्थाटी प २४१ ) जिसकी वार्तमानिक जन्म के भोगों में आस्था है, वह इहास्थ /
इहस्थ है ।
२७५. ईसिप भारा ( ईषत्प्राग्भारा )
२७७. उंछ (उञ्छ)
ईसित्ति अप्प भावे, प इति प्रायोवृत्या, भार इति भारक्कतस्स पुरिसस्स गायं पायसो ईसि गयं भवति, जा य एवं ठिता सा पुढवी ईसिप भारा । ( निचू १ पृ ३२ ) जो पृथ्वी ईषत् / कुछ झुकी हुई है, वह ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी है । २७६. ईहा (ईहा)
( नंदीच पृ ४६ )
उच्छ्यते - अल्पाल्पतया गृह्यत इत्युञ्छः ।
५१
( उचू पु २०७ )
( स्थाटी प २४१ )
वह इहस्थ है ।
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जो थोड़ा-थोड़ा लिया जाता है, वह उञ्छ (भिक्षा) है ।
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( स्थाटी प २०६ )
१. 'ऋषि' के अन्य निरुक्त
ऋषति जानाति तत्त्वं ऋषिः, दर्शनाद्वा ऋषि: । (अचि पृ १४ ) जो तत्त्व को जानता है वह ऋषि है । जो द्रष्टा है, वह ऋषि है ।
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