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अवच्छेववाद-अवतार
अवगाह, वगाह, मज्जन । जल में मज्जन (डुबकी लगाने) की विधि इस प्रकार है:
अङ्गलीभिः पिधायैवं श्रोत्रदृङ्नासिकामुखम् । निमज्जेत प्रतिस्रोतस्त्रिः पठेदघमर्षणम् ।।
[ कान, आँख, नाक, मुख को अङ्गली से दबाकर जल में प्रवाह के सामने स्नान करना तथा तीन वार अघमर्षण मन्त्र पढ़ना चाहिए।] अवच्छेदवाद-इस सिद्धान्त के अनुसार ब्रह्म के अतिरिक्त जगत् की जो प्रतीति होती है, वह एकरस वा अनवच्छिन्न सत्ता के भीतर माया द्वारा अवच्छेद अथवा परिमिति के आरोप के कारण होती है। अवतार-ईश्वर का पृथ्वी पर अवतरण अथवा उतरना। हिन्दुओं का विश्वास है कि ईश्वर यद्यपि सर्वव्यापी, सर्वदा सर्वत्र वर्तमान है, तथापि समय-समय पर आवश्यकतानुसार पृथ्वी पर विशिष्ट रूपों में स्वयं अपनी योगमाया से उत्पन्न होता है। परमात्मा या विष्णु के मुख्य अवतार दस हैं : मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध एवं कल्कि । इनमें मुख्य, गौण, पूर्ण और अंश रूपों के और भी अनेक भेद हैं। अवतार का हेतु ईश्वर की इच्छा है। दुष्कृतों के विनाश और साधुओं के परित्राण के लिए अवतार होता है (भगवद्गीता ४।८)। शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि कच्छप का रूप धारण कर प्रजापति ने शिशु को जन्म दिया । तैत्तिरीय ब्राह्मण के मतानुसार प्रजापति ने शूकर के रूप में महासागर के अन्तस्तल से पृथ्वी को ऊपर उठाया। किन्तु बहुमत में कच्छप एवं वराह दोनों रूप विष्णु के हैं । यहाँ हम प्रथम बार अवतारवाद का दर्शन पाते हैं, जो समय पाकर एक सर्वस्वीकृत सिद्धान्त बन गया। सम्भवतः कच्छप एवं वराह ही प्रारम्भिक देवरूप थे, जिनकी पूजा बहुमत द्वारा की जाती थी (जिसमें ब्राह्मणकुल भी सम्मिलित थे)। विशेष रूप से मत्स्य, कच्छप, वराह एवं नृसिंह ये चार अवतार भगवान् विष्णु के प्रारम्भिक रूप के प्रतीक हैं । पाँचवें अवतार वामनरूप में विष्णु ने विश्व को तीन पगों में नाप लिया था । इसकी प्रशंसा ऋग्वेद एवं ब्राह्मणों में है, यद्यपि वामन नाम नहीं लिया गया है । भगवान् विष्णु के आश्चर्य से भरे कार्य स्वाभाविक रूप में नहीं किन्तु अवतारों के रूप में ही हुए हैं। वे रूप धार्मिक विश्वास में महान् विष्णु से पृथक् नहीं समझे गये ।
अन्य अवतार हैं-राम जामदग्न्य, राम दाशरथि, कृष्ण एवं बुद्ध । ये विभिन्न प्रकार एवं समय के हैं तथा भारतीय धर्मों में वैष्णव परम्परा का उद्घोष करते हैं। आगे चलकर राम और कृष्ण की पूजा वैष्णवों की दो शाखाओं के रूप में मान्य हुई। बुद्ध को विष्णु का अवतार मानना वैष्णव धर्म की व्याप्ति एवं उदारता का प्रतीक है। __ विभिन्न ग्रन्थों में अवतारों की संख्या विभिन्न है । कहीं आठ, कहीं दस्र, कहीं सोलह और कहीं चौबीस अवतार बताये गये हैं, किन्तु दस अवतार बहुमान्य हैं। कल्कि अवतार जिसे दसवाँ स्थान प्राप्त है वह भविष्य में होने वाला है। पुराणों में जिन चौबीस अवतारों का वर्णन है उनकी गणना इस प्रकार है : १. नारायण (विराट् पुरुष), २. ब्रह्मा ३. सनक-सनन्दन-सनत्कुमार-सनातन ४. नरनारायण ५. कपिल ६. दत्तात्रेय ७. सुयश ८. हयग्रीव ९. ऋषभ १०. पृथु ११. मत्स्य १२. कूर्म १३. हंस १४. धन्वन्तरि १५. वामन १६. परशुराम १७. मोहिनी १८. नृसिंह १९. वेदव्यास २०. राम २१. बलराम २२. कृष्ण २३. बुद्ध २४. कल्कि ।
किसी विशेष केन्द्र द्वारा सर्वव्यापक परमात्मा की शक्ति के प्रकट होने का नाम अवतार है। अवतार शब्द द्वारा अवतरण अर्थात् नीचे उतरने का भाव स्पष्ट होता है, जिसका तात्पर्य इस स्थल पर भावमूलक है।
परमात्मा की विशेष शक्ति का माया से सम्बन्धित होना एवं सम्बद्ध होकर प्रकट होना ही अवतरण कहा जा सकता है । कहीं से कहीं आ जाने अथवा उतरने का नाम अवतार नहीं होता। ___ इस अवतारवाद के सम्बन्ध में सर्वप्रथम वेद ही प्रामाण्य रूप में सामने आते हैं। यथा'प्रजापतिश्चरति गर्भेऽन्तरजायमानो बहुधा विजायते ।'
[परमात्मा स्थल गर्भ में उत्पन्न होते हैं, कोई वास्तविक जन्म न लेते हए भी वे अनेक रूपों में उत्पन्न होते हैं।]
ऋग्वेद भी अवतारवाद प्रस्तुत करता है, यथा “रूपं रूपं प्रतिरूपो बभूव तदस्य रूपं प्रतिचक्षणाय । इन्द्रो मायाभिः पुरुरूप ईयते युक्ता ह्यस्य हरयः शता दश ।"
[भगवान् भक्तों के प्रार्थनानुसार प्रख्यात होने के लिए माया के संयोग से अनेक रूप धारण करते हैं । उनके शतशतरूप है। ] इस प्रकार निखिल शास्त्रस्वीकृत अवतार ईश्वर
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