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अनुभूतिप्रकाश-अनुमान
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और परमात्मा दोनों शुद्ध हैं। इसी से इस मत का नाम मुख्य विषय प्रमाण है। प्रमा यथार्थ ज्ञान को कहते हैं । शुद्धाद्वैत पड़ा है । वल्लभ के मतानुसार सेवा द्विविध है- यथार्थ ज्ञान का जो करण हो अर्थात् जिसके द्वारा यथार्थ फलरूपा एवं साधनरूपा। सर्वदा श्री कृष्ण की श्रवण-चिन्तन ज्ञान प्राप्त हो उसे प्रमाण कहते हैं । गौतम ने चार प्रमाण रूप मानसी सेवा फलरूपा एवं द्रव्यार्पण तथा शारीरिक माने है-प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्द । वस्तु सेवा साधनरूपा है । गोलोकस्थ परमानन्दसन्दोह श्री कृष्ण के साथ इन्द्रिय-संयोग होने से जो उसका ज्ञान होता है को गोपीभाव से प्राप्त करके उनकी सेवा करना ही मोक्ष वह प्रत्यक्ष है। लिङ्ग-लिङ्गी के प्रत्यक्ष ज्ञान से उत्पन्न है । ('अनुभाष्य' नाम के लिए द्रष्टव्य 'अनुव्याख्यान' ।) ज्ञान को अनुमिति तथा उसके करण को अनुमान कहते हैं । अनुभूतिप्रकाश-माधवाचार्य अथवा स्वामी विद्यारण्य रचित जैसे, हमने बराबर देखा कि जहाँ धुआँ रहता है वहाँ 'अनुभतिप्रकाश' में उपनिषदों की आख्यायिकाएं श्लोक- आग रहती है। इसी को व्याप्ति-ज्ञान कहते हैं लो अनुबद्ध कर संग्रह की गयी हैं। यह चौदहवीं शताब्दी का मान की पहली सीढ़ी है। कहीं धुआँ देखा गया, जो आग ग्रन्थ है।
का लिङ्ग (चिह्न) है और मन में ध्यान आ गया कि 'जिस अनुभूतिस्वरूपाचार्य-एक लोकप्रिय व्याकरण ग्रन्थकार। धुएं के साथ सदा आग रहती है वह यहाँ है-इसी को सरस्वतीप्रक्रिया नामक इनका लिखा 'सारस्वत' उप- परामर्श ज्ञान या 'व्याप्तिविशिष्ट पक्षधर्मता' कहते हैं। नामक ग्रन्थ पुराने पाठकों में अधिक प्रचलित रहा है। इसके अनन्तर यह ज्ञान या अनुमान उत्पन्न हआ कि 'यहाँ सिद्धान्तचन्द्रिका इसकी टीका है । इसमें सात सौ सूत्र है। आग है' । अपने समझने के लिए तो उपर्युक्त तीन खण्ड कहते हैं कि सरस्वती के प्रसाद से यह ग्रन्थ इन आचार्य पर्याप्त हैं, परन्तु नैयायिकों का कार्य है दूसरे के मन में को प्राप्त हुआ था। .
ज्ञान कराना । इससे वे अनुमान के पाँच खण्ड करते हैं जो अनुमरण-पति की मृत्यु के पश्चात् पत्नी का मरण । पति 'अवयव' कहलाते हैं : के मर जाने पर उसकी खड़ाऊँ आदि लेकर जलती हुई (१) प्रतिज्ञा-साध्य का निर्देश करने वाला, अर्थात चिता में बैठ पत्नी द्वारा प्राण त्याग करना अनुमरण कह
अनुमान से जो बात सिद्ध करनी है उसका वर्णन करने लाता है:
वाला वाक्य-जैसे, 'यहाँ पर आग है'। (२) हेतुदेशान्तरमते पत्यौ साध्वी तत्पादुकाद्वयम् । जिस लक्षण या चिह्न से बात प्रमाणित की जाती है-जैसे, निधायोरसि संशुद्धा प्रविशेत् जातवेदसम् ।। 'क्योंकि यहाँ धुआँ है ।' (३) उदाहरण-सिद्ध की जाने
(ब्रह्मपुराण) वाली वस्तु अपने चिह्न के साथ जहाँ देखी गयी है उसे [देशान्तर में पति के मृत हो जाने पर स्त्री उसकी बतलाने वाला वाक्य-जैसे, 'जहाँ-जहाँ धुआँ रहता है दोनों खड़ाऊँ हृदय पर रखकर पवित्र हो अग्नि में प्रवेश वहाँ-वहाँ आग रहती है', जैसे, 'रसोईघर में।' करे।]
(४) उपनय-जो वाक्य बतलाये हुए चिह्न या लिङ्ग का ब्राह्मणी के लिए अनुमरण वजित है :
होना प्रकट करे-जैसे, 'यहाँ पर धुआँ है ।' (५) निगमन'पृथचिति समारुह्य न विप्रा गन्तुमर्हति ।'
सिद्ध की जानेवाली बात सिद्ध हो गयी, यह कथन । अतः [ब्राह्मणी को अलग चिता बनाकर नहीं मरना चाहिए।] अनुमान का पूरा रूप यों हुआउसके लिए सहमरण (मृत पति के साथ जलती हुई चिता १. यहाँ पर अग्नि है (प्रतिज्ञा)। में बैठकर मरण) विहित है
२. क्योंकि यहाँ धुआँ है (हेतु)। भर्तीनुसरणं काले याः कुर्वन्ति तथाविधाः । ३. जहाँ-जहाँ धुआँ रहता है वहाँ-वहाँ अग्नि रहती कामात्क्रोधाद् भयान्मोहात् सर्वाः पूता भवन्ति ताः ।।
है-जैसे रसोई घर में (उदाहरण) । [ जो समय पर विधिपूर्वक काम, क्रोध, भय अथवा ४. यहाँ पर धुआँ है (उपनय)। लोभ से पति के साथ सती होती है वे सब पवित्र
हो५. इसलिए यहाँ पर अग्नि है (निगमन)। जाती हैं । ] दे० 'सती'।
साधारणतः इन पाँच अवयवों से युक्त वाक्य को 'न्याय' .. अनुमान-ज्ञान-साधन प्रमाणों में से एक । न्याय (तक) का कहते हैं। नवीन नैयायिक इन पांचों अवयवों का मानना
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