________________
३२
अनुपातक-अ(नु)णुभाष्य
अनुपातक-जो कृत्य निम्न मार्ग की और प्रेरित करता है (२२) पुत्र की असवर्ण जाति वाली स्त्री के साथ गमन । वह पाप है । उसके समान कर्म अनुपातक हैं । वेदनिन्दा [ये छः विमातृ-गमन के समान हैं।] आदि से उत्पन्न पाप को भी अनुपातक कहते हैं । उन (२३) माता की बहिन के साथ गमन । पापों की गणना विष्णुस्मृति में की गयी है। यज्ञ में (२४) पिता की बहिन के साथ गमन । दीक्षित क्षत्रिय अथवा वैश्य, रजस्वला, गर्भवती, अवि- (२५) सास के साथ गमन । ज्ञातगर्भ एवं शरणागत का वध करना ब्रह्महत्या के अनु- (२६) मामी के साथ गमन । पातक माने गये हैं। इनके अतिरिक्त ३५ प्रकार के अनु- (२७) शिष्य की स्त्री के साथ गमन । पातक होते हैं, यथा
(२८) बहिन के साथ गमन । (१) उत्कर्ष में मिथ्यावचन कहना । यह दो प्रकार का (२९) आचार्य की भार्या के साथ गमन । है, आत्मगामी और निन्दा (असूया) पूर्वक परगामी।। (३०) शरणागत स्त्री के साथ गमन ।
(२) राजगामी पैशुन्य (शासक से किसी की चुगली (३१) रानी के साथ गमन । करना)।
(३२) संन्यासिनी के साथ गमन । (३) पिता के मिथ्या दोष कहना।
(३३) धात्री के साथ गमन । [ये तीनों ब्रह्महत्या के समान हैं।]
(३४) साध्वी के साथ गमन । (४) वेद का त्याग (पढ़े हए वेद को भूल जाना तथा (३५) उत्कृष्ट वर्ण की स्त्री के साथ गमन । वेदनिन्दा)।
[ये तेरह गुरु-पत्नी-गमन के समान अनुपातक हैं।] (५) झूठा साक्ष्य देना। यह दो प्रकार का है, ज्ञात वस्तु अनुब्राह्मणग्रन्य-ऐतरेय ब्राह्मण के पूर्व भाग में श्रीत को न कहना और असत्य कहना ।
विधियाँ हैं । उत्तर भाग में अन्य विधियाँ हैं। तैत्तिरीय (६) मित्र का वध ।
ब्राह्मण में भी ऐसी ही व्यवस्था देखी जाती है। उस के (७) ब्राह्मण के अतिरिक्त अन्य जाति के मित्र का वध ।। पहले भाग में श्रौत विधियाँ हैं। दूसरे में गृहमन्त्र एवं (८) ज्ञानपूर्वक बार-बार निन्द्य अन्न भक्षण करना। उपनिषद् भाग है। इस श्रेणीविभाग की कल्पना करने
(९) ज्ञानपूर्वक बार-बार निन्दित छत्राक आदि का वालों के मत में साम-विधि का 'अनुब्राह्मण' नाम है । वे भक्षण करना।
लोग कहते हैं कि पाणिनिसूत्र में अनुब्राह्मण का उल्लेख [ये छः मदिरा पीने से उत्पन्न पातक के समान हैं ।। है (४।२।६२) । किन्तु सायण की विभाग-कल्पना में अनु(१०) किसी की धरोहर का हरण ।
ब्राह्मण का उल्लेख नहीं है। साथ ही अनुब्राह्मण नाम के (११) मनुष्य का हरण ।
और किसी ग्रन्थ की कहीं चर्चा भी नहीं है । 'विधान' (१२) घोड़े का हरण ।
ग्रन्थों को 'अनुब्राह्मण ग्रन्थ' कहना सङ्गत जान पड़ता है। (१३) चाँदी का हरण ।
अनुभवानन्द-अद्वैतमत के प्रतिपादक वेदान्तकल्पतरु, शास्त्र(१४) भूमि का हरण ।
दर्पण, पञ्चपादिकादर्पण आदि के रचयिता आचार्य (१५) हीरे का हरण ।
अमलानन्द के ये गुरु थे। इनका जीवनकाल तेरहवीं (१६) मणि का हरण ।
शताब्दी है। ये सात सोने की चोरी के समान हैं।
अ(न)णुभाष्य-ब्रह्मसूत्रों पर वल्लभाचार्य का रचा हुआ (१७) परिवार की स्त्री के साथ गमन ।
भाष्य । वल्लभाचार्य का मत शङ्कराचार्य एवं रामानुज से (१८) कुमारी-गमन ।
वहत अंशों में भिन्न तथा मध्वाचार्य के मत से मिलता-जुलता (१९) नीच कुल की स्त्री के साथ गमन ।
है । आचार्य वल्लभ के मत में जीव अणु और परमात्मा (२०) मित्र की स्त्री के साथ गमन ।
का सेवक है । प्रपञ्चभेद (जगत्) सत्य है। ब्रह्म ही जगत् (२१) अन्य वर्ण की स्त्री से उत्पन्न पुत्र की स्त्री के का निमित्त और उपादान कारण है । गोलोकाधिपति साथ गमन ।
श्री कृष्ण ही परब्रह्म हैं, वही जीव के सेव्य हैं। जीवात्मा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org