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जनन्तफला सप्तमी-अनशन
दिनों में भीड़ अधिक होती है। उस समय तम्बू लगाकर दे० हेमाद्रि, व्रतखण्ड, २, पृष्ठ ६६७-६७१; विष्णुधर्मात्तर ठहरना पड़ता है। तम्बू पहलगांव से किराये पर ले पुराण १७३, १-३० । जाना होता है। आगे चन्दनवाड़ी से शेषनाग की तीन अनन्ताचार्य-ये यादवगिरि के समीप मेलकोट में रहते थे मील कड़ी चढ़ाई है । शेषनाग झील का सौन्दर्य अद्भुत है। तथा 'श्रुतप्रकाशिका' के रचयिता सुदर्शनसूरि के पश्चात् अनन्तफला सप्तमी-इस व्रत में भाद्र शुक्ल सप्तमी से
लगभग सोलहवीं शताब्दी में हुए थे। इन्होंने अपने ग्रन्थ प्रारम्भ कर एक वर्षपर्यन्त सूर्य का पूजन किया जाता है।
'ब्रह्मलक्षण निरूपण' में 'श्रुतप्रकाशिका' का उल्लेख किया दे० हेमाद्रि, व्रतखण्ड १, ७४१; भविष्यपुराण; कृत्य
है। इन्होंने रामानुज मत का समर्थन करने के लिए बहत कल्पतरु; व्रतकाण्ड १४८-१४९ ।
से ग्रन्थों की रचना कर अक्षय कीर्ति का अर्जन किया।
इनके ग्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं-ज्ञानयथार्थवाद, अनन्त मिश्र-उड़िया भाषा में महाभारत का भाषान्तर करने वाले लोकप्रिय विद्वान् । आज से एक हजार वर्ष
प्रतिज्ञावादार्थ, ब्रह्मपदशक्तिवाद, ब्रह्मलक्षणनिरूपण,
विषयतावाद, मोक्षकारणतावाद, शरीरवाद, शास्त्रारम्भपहले लोगों को यह आवश्यकता प्रतीत हो चुकी थी कि
समर्थन, शास्त्रक्यवाद, संविदेकत्वानुमाननिरासवादार्थ, सद्धर्म एवं सदाचार तथा ज्ञान-विज्ञान की जो विधि संस्कृत
समासवाद, समानाधिकरणवाद और सिद्धान्तसिद्धाञ्जन । में निहित है उसे उस काल की प्राकृत भाषाओं में जनता
इन सब ग्रन्थों से आचार्य की दार्शनिकता एवं पाण्डित्य के लिए सुलभ बनाया जाय । यह काम भारत में सर्वत्र
___ का पूरा परिचय मिलता है। होने लगा। इस आन्दोलन के फलस्वरूप तमिल, तेलुगु,
अनन्दानवमी व्रत-इस व्रत में फाल्गुन शुक्ल नवमी से कन्नड़, मलयालम, बँगला, मराठी आदि भाषाओं में
प्रारम्भ कर एक वर्षपर्यन्त देवी-पूजा की जाती है । दे० संस्कृतग्रन्थों का अनुवाद हुआ। उड़िया प्राकृत में महा
कृत्यकल्पतरु; व्रतकाण्ड, २९९-३०१; हेमाद्रि, व्रतखण्ड, भारत का रूपान्तर कई लेखकों ने किया। इनमें अनन्त
१, ९४८-९५० । मिश्र एक प्रसिद्ध भाषान्तरकार थे।
अनन्य-(१) परमात्मा अथवा विश्वजनीन चेतना से व्यक्तिअनन्त व्रत- अनन्त देवता का व्रत । भाद्रपद की शुक्ल
गत आत्मा के अभेद के सिद्धान्त को अनन्यता कहते हैं । चतुर्दशी को अनन्तदेव का व्रत करना चाहिए । माहात्म्य
(२) यह भक्ति का भी एक प्रकार है, जिसके अनुसार निम्नाङ्कित है :
भक्त एक भगवान् के अतिरिक्त अन्य किसी पर अवलम्बित अनन्तव्रतमेतद्धि सर्वपापहरं शुभम् ।
नहीं होता है। सर्वकामप्रदं नृणां स्त्रीणाञ्चैव युधिष्ठिर ।।
अनन्यानुभव-एक सिद्ध संन्यासी महात्मा। इनका जीवनतथा शुक्लचतुर्दश्यां मासि भाद्रपदे भवेत ।
काल दसवीं शताब्दी के पश्चात् तथा तेरट वीं शताब्दी के तस्यानुष्ठानमात्रेण सर्वपापं प्रणश्यति ।
पहले माना जा सकता है। इनको ब्रह्म साक्षात्कार हुआ [ यह अनन्त व्रत सब पापों का विनाश करने वाला
था-ऐसा इनके शिष्य प्रकाशात्मयति के अद्वैतवादी ग्रन्थ तथा शुभ है । हे युधिष्ठिर ! यह पुरुषों तथा स्त्रियों को ‘पञ्चपादिका-विवरण' से ज्ञात होता है। प्रकाशात्मयति सब कामों की सिद्धि देता है। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की ने लिखा है कि गुरु से ब्रह्मविद्या प्राप्त करके ग्रन्थचतुर्दशी को व्रत करने मात्र से सब पाप नष्ट हो रचना की है। जाते हैं ।
अनकं व्रत-मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा को यह ऋतुव्रत एक अन्य मतानुसार यह मार्गशीर्ष मास में तब प्रारम्भ किया जाता है। इसका अनुष्ठान दो ऋतुओं (हेमन्त तथा किया जाता है , जिस दिन मृगशिरा नक्षत्र हो। एक वर्ष शिशिर) में होता है। इसमें केशवपूजा की जाती है । 'ओं पर्यन्त इसका अनुष्ठान होता है। प्रत्येक मास में भिन्न नमः केशवाय' मन्त्र का १०८ बार जप किया जाता है। भिन्न नक्षत्रानुसार पूजन होता है। यथा, पौष में पुष्य दे० हेमाद्रि, वतखण्ड, २, ८३९-४२; विष्णुरहस्य । नक्षत्र में तथा माघ में मघा नक्षत्र में । इसी तरह अन्य अनशन-(१) भोजन का अभाव, इसे उपवास भी कहते मासों में भी समझना चाहिए। यह व्रत पुत्रदायक है। हैं। यह एक धार्मिक क्रिया है जो शरीर और मन की
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