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अमरकोषः
[प्रथमकाण्डेविषशी १ सा तु तन्त्रीभिः सप्तभिः परिवादिनी ॥३॥ २ ततं वीणादिक वाद्यमानाई मुरजादिकम् । ४ शादिकं तु सुधिरं ५ कांस्यतालादिकं घनम् ।।४।। ६ चतुविधमिदं वछि बाझिालोचनामकम् ।
जिदिनी (स्त्री), सितार' अर्थात् 'सात तारवाली चीणा' का , नाम है ॥
२ ततम् (न), 'वीणा आदि बाजाओं' का नाम है। ('आदि पदसे 'सैरन्ध्री, रावणहस्त, एकतारा, सारंगी, इसरात्र, वेला, तानपूरा,....." का संग्रह है')॥
३ भाद्धम ( + अन नद्धम् । न ), 'जो चमड़ेसे मढ़े गये हो, उन मुरज आदि बाजाओ' का १ नाम है। (जैसे-मुरज, एटह, ढोल, तबला,.....")॥
४ सुषिरम् ( + शुपिरम् । न ), 'वंशी आदि बाजाओं' का । नाम है। ('आदि पदसे 'गङ्ख, मुरली; तुनही, सींगा, वेन......" का संग्रह है)।
५ धनम् (न), 'घड़ी, घण्टा आदि बाजाओं' का । नाम है। ('आदि पदसे 'घण्टी, झाल, जोको, मंजीरा,...' का संग्रह है')॥
६ वादित्रम्, भातोयम् ( २ न), पूर्वोक्त 'तत १, आनद्ध २, सुषिर३ और घन ४' इन चार प्रकारके बाजाओं' के २ नाम हैं।
'शिवस्य वीणा नालम्बी सरस्वत्यास्तु कच्छपी॥ नारदस्याथ महती गणानान्तु प्रभावती। विश्वावसोस्तु बृहती तुम्बुरोस्तु कलावती । चाण्डालानां तु कण्डोलवीणा चाण्डालिकाऽपि सा' ।। इति ।।
अ० चि० म० हैम' २ । २०२-२०४ ॥ १. वंशादिकं तु शुषिरं..........' उति भा० दी. प्राच्य सम्मतं पाठान्तरम् , क्षी० स्वा० महे० सम्मतं तु मूलोक्तमित्यवधेयम् ॥
२. तथा च मरतः'वतत्रैवावनद्धं च धनं शुषिरमेव च । चतुर्विधं तु विशेयमातोचं लक्षणान्वितम् ॥१॥ इति ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org