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धीवर्गः ५] मणिप्रभाव्याख्यासहितः।
-१ मनोनेत्रादि धीन्द्रियम् ॥ ८॥ २ तुयरस्तु कषायोऽनी ३ मधुरो लवणः कटुः ।
तिक्तोऽब्लश्व रसाः पुंसि४ तद्वत्सु षडमी त्रिषु ॥९॥ ५ विमोत्थे परिमलो गन्धे जनमनोहरे
भोग करना, ग्रहण करना, चलना और बोलना' इनमें से 1-1 नाम क्रमशः एक-एक इन्द्रियका' है)
१ धीन्द्रियम् (न ।+ ज्ञानेन्द्रियम् ), 'ज्ञानेन्द्रिय का , नाम हैं। ('मन , कान , नेत्र ३, जीभ ४, स्वचा ५ और नाक ६, ये ६ ज्ञानेन्द्रिय अर्थात् ज्ञान करनेवाली इन्द्रियां हैं। 'जानना, सुनना, देखना, स्वाद लेना ,स्पर्श ज्ञान करना और सूंघना' इनमें से 1-1 काम क्रमशः 1-1 इन्द्रियका है)।
२ सुवरः (+तूवरः, कुवरः । पु) कषायः, (पुन) 'कषाय' कलाव' के २ नाम हैं । (हरें में 'कषाय' रस होता है)॥
१ मधुरः, लवणः, कटुः, तिकः, अम्लः (+ब्ल:, भरकः । ५ पु), 'मीठा, खारा, कडुआ, तीता और खट्टा' ये पांच और पहिला कषाय' ऐसे ६ रस हैं। ('इनमें पानी आदि 'मीठा', नमक, सोरा मादि 'बारा मिर्च भादि 'कडुआ' नीम, चिरैता आदि 'तीता' और आम, नींबू, इमली भादि बट्टे' होते हैं । रसः (पु) हैं')॥ __४ ये 'तुवर, मधुर' आदि ७ नाम स्वतः रसवाचक रहनेपर पुहिक है; किन्तु द्रव्यवाचक अर्थात् रसवाले पदार्थ के अर्थ में प्रयुक्त होनेपर निलिम हैं। जैसे-मधुरं जलम, मधुरा भापः, मधुरो गुडः,........")॥
५ परिमलः (पु), 'किसी पदार्थके संघर्ष अर्थात् रगड़से
१. तथा च कामन्दकः -- 'पायपस्थे पाणिपादौ वाक्चेतीन्द्रियसंग्रहः।
उत्सर्ग मानन्दादानगस्यालापाश्च तस्किरणः॥१॥ इति ॥ २. सयुक्तम्-'मनः कर्णस्तथा नेत्रं रसना च स्वचा मह।
नासिका चेति पट तानि धीन्द्रियाणि प्रचक्षते ॥१॥ ति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org