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अमरकोषः
[ प्रथमकाण्डे
१ स्त्रियां प्रावृट् स्त्रियां भूम्नि वर्षा २ अथ शरत्स्त्रियाम् ॥ १९ ॥ ३ षडमी ऋतवः पुंसि मार्गादीनां युगैः क्रमात् ।
४ संवत्सरो वत्सरोऽब्दो हायनोऽस्त्री शरत्समाः ॥ २० ॥ ५ मासेन स्यादहोरात्रः पैशो ६ वर्षेण वतः ।
१ प्रावृट् ( = प्रावृष्, स्त्री ), वर्षाः (स्त्री, नि० ब० व०) 'वर्षा ऋतु के २ नाम हैं । ( 'यह श्रावण और भादों मास में होता है' ) ॥
२ शरत् ( = शरद्, स्त्री ), 'शरद ऋतु' का १ नाम है । ('यह आश्विन और कार्तिक मास में होता है' ) ॥
३ मार्गशीर्ष अर्थात् अगहन महीने से हर दो-दो महीनों में हेमन्त आदि एक एक ऋतु होते हैं । 'ऋतु' शब्द ( पु ) है । ( ' इनका क्रम पृष्ठ ३९ श्लोक १३ में कहा जा चुका है है, अतः वहीं से देखिये ) ॥
४ संवत्सरः ( + परिवत्सरः ), वरसरः, अब्दः ( ३ पु ), हायनः ( पु न । म० ४ पु न ), शरत् ( = शरद्, स्त्री), समाः (स्त्री०, नि० ब० व० ), 'वर्ष, साल' के ६ नाम है ( 'यह १२ महीने का होता है' ) ॥
५ मनुष्यों के एक महीने का 'पैत्रः अहोरात्रः' (पु) अर्थात् 'पितरोंकी दिनरात' होती है । ( 'उसमें मनुष्यों के कृष्णपक्ष में पितरोंका दिन' और मनुष्यों के शुक्लपक्ष में 'पितरोंकी रात' होती है । मिस मतमें आधीरात के बाद दिनका आरम्भ माना जाता है - जैसा कि अंग्रेजीमें तारीखोंका क्रम है; उसके अनुसार यह कथन ठीक है, वस्तुतः तो मनुष्योंके कृष्णपक्ष की अष्टमी के उत्तरार्द्धसे शुक्ल. पक्ष की अष्टमी के पूर्वार्द्धतक 'पितरोंका दिन' और मनुष्यों को शुक्लपक्ष की अष्टमी के उत्तरार्द्धसे कृष्णपक्ष की अष्टमी के पूर्वार्द्धतक 'पितरोंकी रात' होती है; इस तरह मनुष्यों की अमावास्या के अन्त में 'पितरोंका मध्याह्न' और मनुष्यों की पूर्णिमा के अन्तमें पितरोंकी आधी रात' होती है' )
६ मनुष्यों के एक वर्ष या उत्तरायण और दक्षिणायन का 'दैवः अहोरात्र' (पु) अर्थात् 'देवताओंकी एक दिन-रात' होती है । ( 'इसमें उत्तरायण
'पित्र्ये रात्र्यहनी मासः प्रविभागस्तु पक्षयोः ।
कर्मचेष्टास्वहः कृष्णः शुकुः स्वप्नाय शर्वरी ॥ १ ॥' इति मनुः १ ६६ ॥
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