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अमरकोषः।
[प्रथमकाण्डे१ सोपप्लवोपरक्तौ द्वारवग्न्युत्पात उपाहितः। ३ एकयोक्त्या पुष्पवन्तो दिवाकरनिशाकरौ ॥ १०॥ ४ अष्टादश निमेषास्तु काष्ठा५त्रिंशत्तु ताः कला । ६ तास्तु त्रिंशत्मणस्ते तु मुहूतों द्वादशास्त्रियाम् ॥ ११ ॥ ८ ते तु त्रिंशदहोरात्रः९ पक्षस्ते दश पञ्च च ।
१ सोपप्लवः, उपरक्तः (२ पु), 'ग्रहण लगनेपर राहुसे ग्रस्त' (कुछ कटे हुए) सूर्य या चन्द्रमा के २ नाम हैं ।
१ अग्न्युत्पातः, उपाहितः ( २ पु), 'आकाशमें अग्नि-विकार, तारा टूटना, धूमकेतु नामकी ताराका उदय होना और उसके उपद्गव, सूर्यग्रहणादिमें आग्नेयमण्डलसे उत्पन्न तेजोविशेष' इनके २ नाम है ॥
३ पुष्पधन्ती (= पुष्पवत् , नि० द्विव० । + पुष्पदन्तौ । म० पुष्पवन्तौ = पुष्पवन्तः ) 'सूर्य और चन्द्रमा इन दोनों का । नाम है ॥
४ निमेष: (पु), 'निमेष' का १ नाम है। आँखके पलक गिरनेमें जितना समय लगे उसे 'निमेष' कहते हैं )। काष्ठा (स्त्री), 'अटठारह निमेषके बराबर समय' का 'काष्ठा' यह १ नाम है ॥
५ कला (स्त्री), 'तीस काष्ठाके बराबर समय' का १ नाम है । ६ क्षणः (पु) 'तीस कलाके बराबर समय' का । नाम है ॥
७ मुहूर्तः ( पु न ) 'बारह क्षण' अर्थात् 'दो घड़ी' के बराबर समय का १ नाम है।
८ अहोरात्रः (पु), "दिन रात' अर्थात् 'तीस मुहूर्त' या साठ घड़ी का १ नाम है॥
९ पक्षः (पु), 'पन्द्रह दिन-रात या पक्ष' का नाम है ॥
• 'यावता समयेन चलितः परमाणुः पूर्वदेशं नह्यादुत्तरदेशमुपसंपयेत स कालः 'क्षणः' इति पातालमाष्यम् । तस्य च क्षणस्यातीन्द्रियखम् । निमेषस्य चतुर्थों मागः 'क्षणः' इति टीकाकत' इति वै०सि० मजवायां शब्दद्धयादीनां क्षणिकत्वनिरूपणावसरे कुञ्जिकावामुक्तः
क्षणस्वतीन्द्रियोऽन्य एवेत्यवधेयम ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org