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अमरकोषः ।
अथ खीपुंल्लिङ्गसंग्रहः ।
१ स्त्रीपुंसयो २ रपत्यान्ता ३ द्विचतुःषट्पदोरगाः । जातिभेदाः ४ पुमाख्याश्च स्त्रीयोगैः सह ५ मल्लकः ॥ ३७ ॥ 'ऊमिर्वराटकः स्वातिर्वर्णको झाटलिर्मनुः ।
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अथ खीपुंलिङ्गसंग्रहः ।
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१ यहाँ आगे 'खोनपुंसकयो:- ( ३/५/३९ ) के पहले तक 'स्त्रीपुंसयो:' का अधिकार होने से इसके मध्यवर्ती ( बीच वाले ) शब्द 'स्त्रीलिङ्ग और पुंल्लिङ्ग' होते हैं ॥
'अपस्य' अर्थ विहिन प्रत्यय जिनके जन्मे हों वे शब्द स्त्रीलिङ्ग और होते हैं। ( 'जैसे- 'उपगोरपश्यम् औपरादः औपगवी; इसी तरह गार्ग्यः गार्गी वैदेहः वैदेही, वासिष्ठः वासिष्ठी )। इनमें पहला 'औपगव' शब्द लिङ्ग और दूसरा 'औपगवी' शब्द स्त्रीलिङ्ग है, इसी तरह अन्यत्र भी सम्झना चाहिये ॥
३ जाति-भेद द्विरद (दो पैरवाले) १, चतुष्पद (चार पैरवाले) २, षट्पद (छः पैरवाले) ३, और उरग (सर्प) शब्द स्त्रीलिङ्ग और पुंल्लिङ्ग होते हैं । ('क्रमशः उदा०- - १ मानुषः मानुषी, ब्राह्ममः ब्राह्मणी, शूद्रः शूद्रा, पुरुषः पुरुषी, "I २ सिंहः सिंही, अजः अजा, मृगः मृग, व्याघ्रः व्याघ्री, मार्जारः मार्जारी, ་། ३ भ्रमरः भ्रमरी, भृङ्गः भृङ्गी, षट्पदः पट्पदी, ..... I ४ उरगः उरंगी, नागः नागी, सर्पः सर्पिणी, .........)॥
४ स्त्री- योग के साथ पुंस् ( पुरुष ) वाचक शब्द स्त्रीलिङ्ग और पुंल्लिङ्ग होते है । ( 'जैसे - मातुलः मातुलानी-मातुली, इन्द्रः इन्द्राणी) । ( कोई २ उयाख्याकार 'पुमाख्याच स्त्रीयोगेः' इसका सम्बन्ध पूर्वक ही साथ करते हैं )
[ तृतीयकाण्डे
५] अब कुछ स्त्रीलिङ्ग और पुंल्लिङ्ग शब्दोंको स्वयं कहते हैं - 'मलका, मलिका ( पुष्प - छता- विशेष, बेलाका फूल ), ऊर्मिः ( पानीका तरङ्ग । + gfa: अर्थात् ऋषि तपस्विनी ), वराटकः जगटिका ( कौड़ी ), स्वातिः ( + स्वाती । स्वाती नामका पन्द्रहवाँ नक्षत्र), वर्णकः वर्गिका ( चन्दक ), झाटलि: ( पलाश वृक्ष के तुल्य वृक्ष - विशेष ), मनुः मनायो -मनावी- प्रनुः (मनुस्मृतिके निर्माता
१. 'मुनिर्वराटक:' इति पाठान्तरम् ।
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