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अमरकोषः।
[ तृतीयकाण्डे१ उपर्युदीच्यश्रेष्ठेष्वयुत्तरः स्याद २ नुत्तरः ।
एषां विपर्यये श्रेष्ठे ३ दूरानात्मोत्तमाः एगः ॥ १२ ॥ ४ स्वादुप्रियौ तु मधरी ५ करो कठिननिर्दयो। ६ उदारो दातृहतो ७रितरस्स्यायनीचयोः ।। १९२ ।। ८ मन्दस्वच्छन्दयोः स्वरः ९ शुभ्रमहीप्तशुक्लयोः । १० मासारो वेगवद्वर्ष सैन्यप्रसरणं तथा (७४) ११ धाराम्बुपाते चोत्कर्षेऽसौ १२ कटाहे तु कर्परः (७५)
१ 'उत्तरः' (त्रि) के ऊपर, उत्तर दिशा में होनेवाला, श्रेष्ठ, ३ अर्थ 'उत्तरम्' (न) का जवाब, ' अर्थ; 'उत्तर' (पु) का विराट राजाका पुत्र, , अर्थ और + 'उत्तरा' (बी) के उत्तर दिशा, अभिमन्यु ( अर्जुन के पुत्र) की स्त्री, २ अर्थ है ॥
'अनुत्तर' (नि) के नीचे, उत्तरके अतिरिक्त ( भिन्न) दिशामें होनेवाला, नीच, श्रेष्ठ, ४ अर्थ और 'अनुत्तरम्' (न) का निरुत्तर, । अर्थ है ।
३ 'परः' (त्रि) के दूर, शत्रु, उत्तम, दूसरा (अपने से भिन्न ), ४ अर्थ और 'परम्' (न) का केवल, १ अर्थ है । ___'मधुर' (त्रि ) के स्वादिष्ट, प्रिय, २ अर्थ; 'मधुरः' (पु) का मीठा, १ अर्थ और + 'मधरा' (स्त्री) का सौंफ, १ अर्थ है ॥ ५ 'कर' (वि) के कठिन, निर्दय, घोर, ३ अर्थ हैं॥
'उदारः' (त्रि) के दाता, बड़ा, चतुर, ३ अर्थ हैं। ७ 'इतरः' (नि) के दूसरा, नीच, २ अर्थ हैं ॥ ८'स्वैरः' (त्रि) के मन्द, स्वतन्त्र, २ अर्थ हैं।
९ 'शुभ्रम्' (त्रि) के उद्दीष्ठ (प्रकाशमान), श्वेत वर्णवाला, २ अर्थ और 'शुभ्रम् (न) का सफेद रंग, , अर्थ है ॥
.. [आसार' (पु) के जोरसे वर्षा होना, सेनाका फैलना, २ अर्थ हैं] ॥
"['धारा' (स्त्री) के धारसे पानो भादिका गिरना, तलवार आदि की पार, घोडेकी गति-विशेष, सेनाप्रभाग, ४ अर्थ है ॥
['कर्पर (पु) के कटाह (बड़ी कड़ाही), शम-विशेष, कपाल, ३ अर्थ हैं] ॥ १. 'मयंक्षेपकांश बी. वा. व्याख्याने समुपलभ्यत इति प्रकृतोपयोगितयात्र स्थापितः।
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