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अमरकोषः।
[ तृतीयकाण्डे१ विधुविष्णौ चन्द्रमसि २ परिच्छेदे बिलेऽवधिः ॥ ९९ ॥ ३विधिविधाने देवेऽपि प्रणिधिः प्रार्थने चरे। ५ बुधवृद्धौ पण्डितेऽपि ६ स्कन्धः समुदयेऽपि च ॥ १०॥ ७ देशे नविशेषेऽब्धौ सिन्धुर्ना सरिति स्त्रियाम् । ८ विधा विधौ प्रकारे च ९ साधू रम्येऽपि च त्रिषु ॥ १०१॥ १० बधूर्जाया स्नुषा स्त्रीच ११ सुधालेयोऽमृतं स्नुही। १२ संधा प्रतिक्षा मर्यादा १३ श्रद्धा संप्रत्ययः स्पृहा ॥ १०२।। १४ मधु मधे पुष्परसे क्षौद्रेपि१ 'विधुः' (पु) के विष्णु, चन्द्रमा, कर्पूर, ३ अर्थ हैं । २ अवधिः' (पु) के समान ( हद्द), बिल या गढा, समय, ३ अर्थ हैं। ३ विधिः' (पु) के विधान (कानून), भाग्य, ब्रह्मा, समय, प्रकार, ५ अर्थ हैं। ४ 'प्रणिधि:' (पु) के याचना करना, दूत, २ अर्थ हैं ।
५ 'बुधः' (पु) के पण्डित, बुधनामक ग्रह २ अर्थ और 'वृद्धः' (त्रि) के पण्डित, पुराना या बूढ़ा, बढ़ा हुआ, ३ अर्थ हैं ॥
६ 'स्कन' () के समूह, सैन्यभाग, काण्ड (शाखा, डाल ), कन्धा,
राजा, ५ अर्थ हैं।
७ 'सिन्धुः ' (पु) के सिन्धुदेश, नद-विशेष ( यह पजाब-में है ), समुद्र, ३ अर्थ और 'सिन्धुः ' (स्त्री) का नदी, १ अर्थ है ॥
८'विधः' (स्त्री) के विधि, प्रकार ( तरह, जैसे-द्विविधा, त्रिविधा,." ... ), हाथी-घोड़े आदिका भोजन, वेतन, वृद्धि ५ अर्थ हैं ।
९ 'साधुः' त्रि) के रमणीय, सजन (महात्मा), बनियाँ, ३ अर्थ हैं ।
१० 'वधूः' (स्त्री) के पत्नी, पतोहू (पुत्र-भतीजा आदिकी स्त्री), स्त्री-मात्र ३ अर्थ हैं।
१५ 'सुधा' (बी) के लेप, आरत, मोड, ३ अर्थ हैं। १२ 'संधा (स्त्री) के स्वीकार, मर्यादा, प्रतिज्ञा, ३ अर्थ हैं । १३ 'श्रद्धा' (स्त्री) के आदर, काङ्खा, २ अर्थ हैं ।
१४ 'मधु' (न) के मदिरा फूलका रस, शहद, दूध ४ अर्थ और 'मधु' (पु) के वसन्त (चैत-वैशाख) ऋतु, मधु नामका दैत्य, चैत्र महीना, एक प्रकारका पेड़, ४ अर्थ हैं ।।
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