________________
४५० अमरकोपः।
[ तृतीयकाण्डे१ युक्ते मादामृते भूतं प्राण्यतीते समे त्रिषु । २ वृत्तं पद्य चरित्रे त्रिवतीते दृढनिस्तले ॥ ७॥ ३ महद्राज्यं चा ४ वगीतं जन्धे स्थाद् गर्हिते त्रिषु । ५ श्वेतं रूप्येऽपि ६ रजतं हेमन रूपये सिते त्रिषु ।। ७२ ॥ ७ 'त्रिवतो ८ जगदिङ्गेऽपि रक्तं नील्यादि रागि च ।
१ 'भूतम्' (न) के युक्त ( उचित ), पृथ्वी आदि (जल, वायु, तेज और आकाश), सत्य, ३ अर्थ और 'भूतम्' (त्रि ) के प्राणी, बीता हुआ, सदृश, प्राप्त, ४ अर्थ हैं ।
२ 'वृत्तम् (न) के श्लोक आदि पद्यमात्र (जिनमें मात्राकी नहीं किन्तु वर्गोंकी गणना हो वह पद्यविशेष' ), चरित्र, २ अर्थ और 'वृत्तः' (त्रि ) क बीता हुआ, दृढ़ (मजबूत), गोलाकार, अधीत (पढ़ा हुआ ), ४ अर्थ हैं ।
३ 'महत्' (त्रि) का बड़ा, १ अर्थ और 'महत्' (न) का राज्य, ५ अर्थ है ॥
'अवगीतम्' (न)का जनापवाद, १ अर्थ और 'अवगीतः' (त्रि) के सिद्धान्न, निन्दित, दुष्ट ( + दृष्ट अर्थात् देखा गया), ३ अर्थ हैं ।
५ 'श्वेतम्' (न) का चाँदी १ अर्थ; 'श्वेतः' (त्रि) का सफेद पदार्थ, १ अर्थ; 'श्वेतः' (पु) के द्वीप-विशेष, पर्वत-विशेष, २ अर्थ और + 'श्वेता' (स्त्री) के कौड़ी, काष्ठपाटली, शङ्खिनी, ३ अर्थ हैं ॥
६ रजतम्' (न) सोना, चाँदी, २ अर्थ और 'रजतम्' (त्रि) का सफेद वर्णवाला पदार्थ । अर्थ है ॥
७ यहाँसे सब तान्त शब्द त्रिलिङ्ग हैं ॥
८ 'जगत्' (त्रि) का जङ्गम, । अर्थ; 'जगत्' (न) का संसार, १ अर्थ और 'जगत्' (पु) का वायु, १ अर्थ है ॥
९ रक्तम्' (न) का लाल रंग, खून, कुकुम, ३ अर्थ, 'रका' (त्रि) के अनुरक्त, रँगा हुआ कपड़ा आदि, २ अर्थ हैं ।
१. 'त्रिष्वितो' इति पाठान्तरम् ।। २. एतच्च द्रष्टव्यं छन्दोमायो 'पचं चतुष्पदों स्यादिनोकं प्रथमायाये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org