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पामार्थवर्ग:३] मणिप्रभाव्याख्यासहितः।
४४४ १ वनिता जनितात्यर्थानुरागायां च योपिति । २ गुप्तिः क्षितिव्युदासेऽपि ३ धृनिर्धारणधर्थयोः ।। ७ ।। ५ वृहती क्षुद्रवार्ताको छन्दाभेदे मायपि । ५ 'वासिता स्वीकारण्यांश्च ६ वातोनशुतो li
धात फल्गुन्यरोगे च विष्व ७ प्सु तामृतं । ८ कलधौतं रुप्य हेम्नो ९निमितं हेतुलक्ष्मणोः ।। ७६ ।। १० श्रुतं शास्त्रावधृतयो ११ युगपर्यातयोः कृतम् । १२ अत्याहितं महाभीतिः कर्म जीवानक्षि च ।। ७७ ।। १ 'वनिता' (स्त्री) के अत्यन्त प्यारी स्त्री, स्त्रीमात्र, २ अर्थ हैं ॥
२ 'गुप्तिः' (स्त्री) के जमीनका गढा ( गुफा या सुरङ्ग), जेलखाना, रक्षा ३ अर्थ हैं।
३ 'धृतिः' (स्त्री) के धारण, धैर्य, योग-विशेष, यज्ञ, पुष्टि, ५ अर्थ हैं ॥
४ 'बृहती (स्त्री) के रेंगनी (भटकटैया), नव अक्षर का (जैसेमणिबन्ध,.. ) छन्द, बड़ी, विश्वावसुकी वीणा, वस्त्र विशेष ५ अर्थ हैं ॥
५ 'वासिता' (+वाशिता । स्त्री) के स्त्री, हथिनी, २ अर्थ हैं ।
६ 'वार्ता' (स्त्री) के जीविका, बात, २ अर्थ और 'वार्तम्' (त्रिके सारहीन (निस्तत्व, निर्बल), नीरोग, २ अर्थ हैं ।
७ 'घृतम्' (न) के घी, पानी, २ अर्थ और 'घृतम्' (त्रि) का प्रदीप्त, १ अर्थ तथा 'अमृतम्' (न) के अमृत, पानी, घी, यज्ञ-शेष, अयाचित, मोक्ष ६ अर्थ और 'अमृतः (पु) के धन्वन्तरि, देवता, २ अर्थ हैं।
८ 'कलधौतम्' (न) चाँदी, सोना, २ अर्थ हैं । ९ निमित्तम्' (न) के कारण, चिह्न, २ अर्थ हैं ।
१० 'श्रुतम्' (न) का शास्त्र, : अर्थ और 'श्रुतम्' (त्रि ) का सुना हुआ, १ अर्थ है ॥
११ 'कृतम्' (न ) के सत्ययुग, पर्याप्त (पूरा, काफी); २ अर्थ हैं ।
१२ 'अत्याहितम् (न) के बड़ा भय, जीनेकी आशा छोड़कर किया हुआ बहुत बड़ा साहस, २ अर्थ हैं ।
१. 'वाशिता' इति पाठान्तरम् ।।
२६ अ०
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