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अमरकोषः
अथ जान्ताः शब्दाः ।
१ के कितावद्दिभुजौ २ दन्तविप्राण्डजा द्विजाः । ३ अजा विष्णुहरच्छामा ४ गोष्ठाध्वनिवद्दा वजाः ॥ ३० ॥ ५ धर्मराजौ जिनयमौ ६ कुञ्जो दन्तेऽपि न स्त्रियाम् । ७ वलजे क्षेत्र पूरे चलजा वल्गुदर्शना ॥ ३१ ॥ ८ समे क्ष्मांशे रणेऽप्याजिः ९ प्रजा स्यात्सन्ततौ जने । २० अब्जौ शंखशशांकौ च ११ स्वके नित्ये निजं त्रिषु ॥ ३२ ॥ इति जान्ताः शब्दाः ।
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अथ जान्ता शब्दाः ।
१ 'अहिभुक' ( + अहिभुज् पु ) के मोर, गरुड २ अर्थ हैं ॥
२ 'द्विज' (पु) के दाँत, ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ये तीनों वर्ण, अण्डज ( चिड़िया, साँप, मछली, मगर आदि ), ३ अर्थ हैं ॥
[ तृतीयकाण्डे
३ 'अज:' (पु) के विष्णु, शिवजी, छाग ( खस्सी ), रघुके पुत्र ( 'अज' नामका रघुवंशी राजा ), ब्रह्मा, कामदेव, ६ अर्थ हैं ॥
४ 'व्रजः' ( पु ) के गोष्ठ ( गौओंके ठहरनेका स्थान गोशाला आदि ), रास्ता, समूह, ३ अर्थ हैं ॥
५ ' धर्मराजः' (पु) के जिन (बुद्धदेव), यमराज, युधिष्ठिर, ३ अर्थ हैं ॥ ६ 'कुञ्जः' (पुन) के हाथी का दाँत, कुअ (लता आदिसे गलोके समान बना हुआ स्थान विशेष ) २ अर्थ हैं ।
७ 'लजम्' (न) के क्षेत्र, नगरका फाटक या द्वार, २ अर्थ और 'घलजः ' (त्रि ) का देखने में प्रिय लगनेवाला, १ अर्थ है ॥
८ 'आजि:' (स्त्री) के बरावर (समतल ) जमीन, युद्ध, २ अर्थ हैं ॥ ९ 'प्रजाः' (स्त्री) के सन्तान (पुत्र या पुत्रो, प्रजा ( रैयत), २ अर्थ हैं ॥ १० 'अन्न' (पु) के शंख, चन्द्रमा, धन्वन्तरि, ३ अर्थ और 'अजम्' ( न ) का कमल, १ अर्थ है ॥
११ 'निजम् ' ( त्रि) के आत्मीय ( अपना ), नित्य, २ अर्थ हैं ॥ इति जान्ताः शब्दाः ।
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