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अमरकोषः ।
[ तृतीय काण्डे -
१ मनोद्दतः प्रतिहतः प्रतिबद्धो हरक्ष सः ॥ ४१ ॥ २ अविक्षिप्तः प्रतिक्षिप्तो ३बद्धे कीलित संयतौ ।
आपन आपत्प्राप्तः स्यात् ५ कान्दिशीको भयद्भुतः ॥ ४२ ॥ ६ आक्षारिता क्षारितो८भिशस्ते ७ संक कोऽस्थिरे । ८ व्यसनात परतौ द्वौ ९ विहस्तग्याकुलौ समौ ॥ ४३ ॥ १० विक्लवो विह्नतः १९ स्यात्तु विवशोऽरिष्टदुष्टधीः । १२ कश्यः कशार्हे
१ मनोहता, प्रतिष्ठतः, प्रतिवद्धः हतः (त्रि ), 'काम पूरा न होनेले टूटे हुए मनवाले ( हतोत्साह, मनटूट ) के ४ नाम हैं ।॥
२ अविक्षिप्तः, प्रतिक्षिप्तर ( २ त्रि ), करता हो उसीके सामने तिरस्कृत' के २ ३ बद्धः, कीलितः, संयतः (३ त्र ), 'रस्सो आदिले बाँधे हुए' के ३ नाम हैं |
'जिससे डाई' ( ईर्ष्या )
नाम हैं ॥
४] आपन्नः, आपत्प्राप्तः ( २ त्र ), 'दुःख में पड़े हुए' के २ नाम हैं ॥ ५ कान्दिशीकः, भयद्भुतः ( २ त्रि ), 'भय से भागे हुए' के २ नाम हैं ॥ ६ भक्षारितः, क्षारितः, अभिशस्त: ( ४ त्रि ), 'चोरी या मैथुन आदि बुरे कामके विषय में झूडा ( बिना किये मी ) लोकापवाद पाये हुए ' के ३ नाम हैं ॥
संकसुकः, अस्थिरः ( २ त्र ), 'स्थिर नहीं रहनेवाले' के २ नाम हैं । ८ उपसनाती, उपरक्तः ( २ पु ) 'व्यसन से दुःखी' के २ नाम है ॥ ९ विहस्तः, व्याकुलः (२ त्रि), 'व्याकुल' (शोक आदिके कारण कर्तव्य ( अपने करने योग्य काम ), के निषय को नहीं करने वाले ) के २ नाम हैं ॥ १० विक्लवः, विह्नरुः (२ त्रि ), 'विज्ञान' ( शोकादि के कारण भने शरीरको सँभालने में असमर्थ ) के २ नाम हैं ॥
११ विवशः, अरिष्टदुष्टोः (२ वि ); 'मृत्युकाल समीप होनेसे 'अस्थिर बुद्धिवाले' के २ नाम है ॥
१२ कश्यः, कशार्हः ( १ त्रि), 'कोड़ेसे मारने योग्य मनुष्य, घोड़े - आदि' के २ नाम हैं ॥
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