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अमरकोषः
- १ कर्मशूरस्तु कर्मठः ॥ १८ ॥
२ ' भरण्यभुक्कर्मकर: ३ कर्मकारस्तु तत्क्रियः । ४ अपस्नातो मृतस्नात ५ आमिषाशी तु शौष्कलः ।। १९ ।। ६ बुभुक्षितः स्यात्क्षुधितो जिघत्सुरशनायितः । ७ परान्नः परपिण्डाको ८ भक्षको घस्मरोऽद्मरः ॥ २० ॥ आधूमः स्यादौरिको विजिगीषाविवर्जिते । १० उभौ स्वारमम्भरिः कुक्षिम्भरिः स्वोदरपूरके ॥ २१ ॥
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[ तृतीयकाण्डे
१ कर्मशूरः कटः ( २ त्रि ), 'आरम्भ किये हुए कामको यत्नपूर्वक पूरा करनेवाले' के २ नाम हैं ॥
२ भरण्यभुक ( = भरण्य भुज् । + कर्मण्यभुक् = कर्मण्यभुज् ), कर्मक (२ त्र ), 'मजदूर या मूल्य लेकर काम करनेवाले नौकर आदि' के नाम हैं ॥
३ कर्मकार : ( नि ), 'बिना वेतन आदि लिये काम करनेवाले' का १ नाम है । ( जैसे - स्वयंसेवक, श्रमदानी,
) ॥
४ अपस्नातः, मृतस्नासः (२ त्रि) मरे हुए परिवार आदिके उ. द्देश्य से स्नान किये हुए' के २ नाम हैं ॥
4 Wifaqısit ( = Wifaqıfag), sikas: ( + a1650;, g(FZ: 1 २ त्र ), 'मांस खानेवाले' के २ नाम हैं ।
६ बुभुचितः पुधितः, जिधरसुः, अशनाथितः (४ त्रि), 'भूखे हुए' के ४ नाम हैं ॥
७ पान:, परपिण्डादः (२ त्रि ), 'दूसरेके अन्नको खाकर जीनेवाले' हे २ नाम है ॥
८ भक्षकः, वस्मरः, अझरः ( ३ त्रि ), 'बहुत खानेवाले' के ३ नाम है ॥ ९ आसून, औदरिकः ( २ त्र ), 'अत्यन्त भूखे हुए' के २ नाम हैं ॥ 10 anamfi:, zfernft: ( +aquaft: 1 २ त्र ), 'पेटू' अर्थात् 'अपने पेट भरने से मतलब रखनेवाले' के २ नाम हैं ।
१. 'कर्मण्यभुक्कर्मकरः' इति पाठान्तरम् ॥
२. अयं प्राकू ( २।१० – १५ ) कोऽपि पर्यायान्तरक बनायेह पुनरप्युक्तः ॥
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