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अथ तृतीयकाण्डम्
वर्गभेदान् कथयति१ विशेष्यनिधनैः संकीर्णैर्नानार्थैरव्ययैरपि ।
लिङ्गादिसंग्रहैर्वर्गाः सामान्ये 'वर्गसंश्रयाः ॥ १॥
सर्वसाधारण होने से 'सामान्यकाण्ड' नामक इस प्रकरण में विशेष्य (स्त्री, दारा, कलत्र आदि पहले कहे हुए शब्द) के अधीन लिङ्ग और वचनवाले 'सुकृती साधु......' शब्दोंसे विशेष्यनिघ्नवर्ग १, आपस में भिन. जातीय अर्थवाले 'कर्मपरायण,... ...' शब्दों से संकीर्णवर्ग २, अनेक अर्थवाले 'नाक, लोक,.......' शब्दोंसे नानार्थवर्ग ३, 'आङ्,... अव्यय शब्दों से अव्ययवर्ग ४, और प्रत्यय अर्थात् 'टाप, ङप, घन, क,....... के द्वारा लिङ्गबोधक शब्दों से लिङ्गादिसंग्रहवर्ग५, कहता हूँ। विशेष्यनिघ्न आदि ५ घोंके क्रमशः उदाहरण । १ विशेष्यनिघ्नवर्ग जैसे-'सुकृतिनी साध्वी पुण्यवती वा स्त्री,...... । २ संकीर्णवर्ग जैसे-'कर्मपरायण,.....आदि शब्दों से कारीगरी, आदि किसी काम में लगे हुएका बोध होता है । ३ नानार्थवर्ग जैसे-'नाक, लोक,......' यहां पहलेवाले 'नाक, शब्दके 'स्वर्ग और भाकाश' तथा दूसरे 'लोक' शब्द के 'संसार और जन' ये २.३ अर्थ है।
अव्ययवर्ग जैसे-'आइ के थोक मादा और वाक्य, ये अर्थ है। ५ लिङ्गादिसंग्रहवर्ग जैसे-वेफालिजा, अजा,..."शब्दों में 'टाप' आदि प्रत्ययों से स्वटिङ्गका बोध होता है')। इन ५ वर्गों के पूर्वोक्त स्वर्गादि वर्ग ही संश्रय हैं अर्थात ये विशेष्यनिघ्न प्रादि वर्ग स्वतन्त्र नहीं हैं। अथवा-हेतुभूत विशेषणादिसे से ५ वर्ग इस सामान्य काण्ड अवान्तरवर्ग(जैसे-नानार्थवर्ग, कान्तादिवर्ग, अव्ययवर्ग में --- अनेकार्थ एकार्थवर्ग, और लिङ्गादिसंग्रहवर्ग में-सी. लिङ्गादिवर्ग)का संश्रय करते हैं।
१. 'वर्गसंग्रह' इत्येके पेठुः । सामान्यकाण्डे ये पञ्च वर्गाः स 'वर्गसंग्रह' इति योजना' इति क्षी० स्वा०॥
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