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अमरकोषः।
[द्वितीयकाण्डताखादन्यतो वृत्ताबूह्या लिलान्तरेऽपि ते।
इति शूद्रवर्गः ॥१०॥
अथ काण्डसमाधिः१ 'इत्यमरसिंहकृती नामलिशानुशासने।
द्वितीयकाण्डो भूम्यादिः सान एव समर्थितः ॥१॥ इत्यमरसिंहविरचिते 'नामलिङ्गानुशासना' परपर्यायके
अमरकोषे द्वितीयो भूम्यादिकाण्डः समाप्तः ॥
खीवाचक होनेपर स्त्रीलिङ्गमें और नपुंसक में वृत्ति होनेपर नपुंसकलिङ्ग में प्रयुक्त होते हैं, ऐसा समझना चाहिये। ('उदाहरण क्रमशः । यौगिक शब्द, तीनो लिङ्गमें जैसे-मार्दशिकः पुरुषः, मादनिका स्त्री, मार्दङ्गिक कुलम् ; मौरजिका पुरुषः, मौरजिकी सा, मौरजिक कुलम् ; ..। कढ शब्द, तीनों लिहों. में जैसे-कुम्भकारः पुरुषः, कुम्भकारी सा, कुम्भकारं कुळम् ; कुलालः पुरुषः, कुलाली स्त्री, कुलालं कुलम् , करणः पुरुषः, करणी स्त्री, करणं कुलम् ......। इसी प्रकार अन्यान्य शब्दों के उदाहरणको समझना चाहिये')॥
इति शूदवर्गः ॥१०॥
अथ काण्डसमाप्ति:श्री अमरसिंहके बनाये हुए नाम (भूः, भूमिः, अचला....... ) और लिज (पुंशिम, वीलिङ्ग और नपुंसकलिङ्ग) को बतलानेवाले 'नामलिङ्गानुशासन' अर्थात् 'अमरकोष' नाम इस ग्रन्थ में भूमि आदि ('आदि शब्दसे पुर, बोल, वनौषधि, भादि • वर्गों का संग्रह है') वर्गवाला यह दूसरा काण्ड (भाग) अ (मृत् , शाखा, नगर, आदि और उपान मृत्सा आदि) के सहित समर्थित होकर सम्पूर्ण हुमा ॥ इति पण्डितप्रवरश्री रामस्वार्थमिश्र' तनुजश्री हरगोविन्दमिझ' विरचितायो _ 'मणिप्रभारण्या'मरकोष' व्याख्यायां द्वितीयो भूग्यादिका समाप्तः ॥
१. अयं क्षेपकरकोका क्षी० स्वा० मूलपुस्तके नोपलभ्यते, महे० मा० दी० पुस्तकयोर्मूलमात्रमुपलभ्यत इत्यवधेयम् ।।
२. 'बातेरसीविषयादयोपभाव ( पा० सू० ४।१।६१) इत्यनेनेति शेयम् ।
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